Tuesday, December 28, 2010

पुस्तक खुली हुई

मेरी वफ़ा देखो, उनकी जफ़ा देखो
फिर भी मनाते हम, वो हैं खफा देखो


है ज़िंदगी मेरी, पुस्तक खुली हुई
पूरी नहीं बस तुम पहला सफा देखो


धरती जहाँ मिलती अम्बर उसे चूमे
दम हो अगर जाओ, उनकी वफ़ा देखो


तुम रो रहे हो क्यूँ उनसे जुदा होके
माँ की तरफ अपनी तुम इक दफा देखो


बच्चा खड़ा गुमसुम मीजे पड़ा आँखें
तुमसे नहीं बोला, वो है खफा देखो


सम्बन्ध हों मीठे, भरसक निभाओ तुम
ढोना लगे भारी, घाटा नफा देखो

Monday, December 27, 2010

आइनादारों की बस्ती

हम उनके सेहन-ए-गुलशन में कभी सोया नहीं करते 
खुदी को हम मुहब्बत के लिए खोया नहीं करते 

रहे हैं आज तक हम आइनादारों की बस्ती में 
छुपा के दोस्तों से आँख हम धोया नहीं करते 

चले जाओ अगर तुम भी, नहीं हैरानगी होगी
कराओ तुम हमें चुप, सोच के रोया नहीं करते 

मुझे लूटे कभी कोई नहीं मुमकिन कहीं से भी 
कि आँखें मूद कर हम बेखबर सोया नहीं करते 

रहाइश तो उन्ही के साथ होती रात दिन लेकिन 
समंदर साहिलों में जिन्दगी बोया नहीं करते 

Wednesday, December 22, 2010

ग़ज़ल का दम


किसी भी दोस्ती में जब कभी भी दाग़ होता है
हकीकत है यही की दोस्ती को दोस्त ठगता है 

परीशां हो नहीं, छाया अँधेरा  भी मिटेगा ही
हमेशा रात के ही बाद तो सूरज निकलता है 

मुझे आँसू नहीं भाते, मगर वो अश्क है मोती 
किसी की आँख से जो आह पर मेरी,छलकता है

अंधेरी रात की साजिश से हमको ये नही दिखता 
यकीं रखिये की सूरज हर घड़ी मौजूद रहता है 

निकल कर शहर से जब सड़क मेरे गाँव में पहुची 
लगे ऐसा यहाँ इसका भी जैसे दम निकलता है 

हँसी जो देख ली थी एक दिन उन सुर्ख होठों पर 
मेरे दिल में हमेशा इक सुहाना ख़्वाब पलता है 

मेरी तनहाइयों से है नहीं शिकवा मुझे कोइ 
इन्ही क़े साथ ही मेरा जहाँ आबाद रहता है

सुराहीदार गर्दन, झील सी आँखें, हँसी सूरत  
पुराना हो चुका कोई फ़साना कम ही चलता है 



Friday, December 17, 2010

मुहब्बत

मुहब्बत हमारी तुम्हारी रजा है 
मुहब्बत मुहब्बत है इसमें मजा है 


खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
मुहब्बत बिना तो ये जीवन क़ज़ा है


मुहब्बत का है आज दुश्मन बना जो
कभी तो मुहब्बत मुहब्बत भजा है 


मुहब्बत जिसे मिल गयी जिंदगी में 
इसे छोड़ उसने तो सब कुछ तजा है 


हो लंगडा या लूला या अंधा कि काना 
ये ताज़े मुहब्बत तो हर सर सजा है 

किसीको कहानी सुनाके जलाऊँ


किसीको कहानी सुनाके जलाऊँ
हँसूँ या मैं अपनी हँसी को छुपाऊँ

ख़ुशी से दिया जो जलाया था मैंने 
बुझा दूँ उसे और खुद को जलाऊँ

हमारे ग़मों कि तुम्ही तो दवा हो
तुम्ही हो जिसे देख कर मुस्कराऊँ

मेरे दिल में उभरी हुईं है दरारें
उन्हें लाँघ क़े मैं तेरे पास आऊँ

इलाही तुम्हारा मुक़द्दर बना दे
इसी इक दुआ को मैं लब पर सजाऊँ

निभानी मुझे है वफ़ा जो तुम्हारी
तुम्हे मैं भला छोड़कर कैसे जाऊं

मलाहत तुम्हारे हँसी आरिजों कि
जिन्हें देख कर होश अपने गवाऊँ


जो बादल फटे हैं रुआँसे थे कब से 

इन्हें अपनी आँखों से कब तक बहाऊँ 

नहीं हो सका मैंने कोशिश तो की थी 
हँसूं खुल के मैं औ नहीं डबडबाऊँ

मुझे होश आया लुटा क़े सभी कुछ
मिला जब सभी कुछ कहाँ होश पाऊँ

मुसीबत तो देखो जले दिल हमारा
बुझाऊँ मैं दिल को या उनको रिझाऊँ

Tuesday, December 14, 2010

मुझे तू रुलाये तुझे मैं हंसाऊँ

मुझे तू न समझे न मैं जान पाऊँ
मुझे तू रुलाये तुझे मैं हंसाऊँ

दिखाएँ चलो एक ऐसा नजारा
कि तू रूठ जाए तुझे मैं मनाऊँ

सुकूं क़े लिए आज से ये करें हम
न तू याद आये न मैं याद आऊँ

बड़ी कोशिशें भूलने कि हुईं पर
न तू भूल पाए न मैं भूल पाऊँ

मैं साँपों क़े ही बीच पलता रहा हूँ
भला आज मैं इनसे क्यों खौफ खाऊँ

मुझे याद आती हैं बचपन कि बातें
तू पकडे जो तितली उसे मैं उडाऊं

तुझे हो मुबारक तुम्हारी वो मस्ती
मैं होली दिवाली अकेले मनाऊँ

बहाने से करवा क़े गुडिया की शादी
तुम्हे प्यार करता हूँ मैं ये बताऊँ

मुझे देख क़े तेरा आँचल गिराना
तुझे थी तवक्को कि मैं मुस्कराऊँ


खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
जिसे देख मैं मन ही मन मुस्कराऊँ

मुहब्बत

१२२ १२२ १२२ १२२
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन



गुलों की सजी लाल क्यारी मुहब्बत 
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत 


जहाँ में सभी लोग हारे इसीसे 
सदा ही खुदी से है हारी मुहब्बत  


इसी दम पे गम को सहे जा रहे हैं
की होगी कभी तो हमारी मुहब्बत 


जहाँ में रहे हैं कई लोग कायम 
कभी भी जिन्होंने न हारी मुहब्बत  


हुई बंद साँसे मगर प्यार जिन्दा 
रटे जा रहे मेरी प्यारी मुहब्बत  


वो लैला वो मजनू वो फरहाद शीरी 
रहेगी सदा इनपे वारी मुहब्बत 


चलो देख लें आज माज़ी को इनके  
हमें कुछ मिले जानकारी मुहब्बत  


रहें हैं खड़े बांह फैला कभी से    
भरें बाजुओं में हमारी मुहब्बत  


मुहब्बत क़े पहलू अभी और भी हैं
कहाँ हमने देखी संवारी मुहब्बत 


जवाँ जो बता क़े गया कान में है  
उसी को निभाती बिचारी मुहब्बत  


भरेगा खुशी वो जमाने की माथे 
रही गुनगुना आसवारी मुहब्बत 


वो सीमा पे सैनिक खड़े तान सीना
लहू माँग में जिनका धारी मुहब्बत  


सुहागन बनी है ये धरती अभी तक 
जवानो ने खूं से संवारी मुहब्बत  


जवानो क़े अपने ही परिवार वाले
रहे पाल कितनी कुंवारी मुहब्बत  


इन्ही से सलामत हमारी मुहब्बत
चलो दें इन्हें ढेर सारी मुहब्बत  


मोहब्बत कहानी लगे दिलजलों को 
हमें तो पियारी हमारी मुहब्बत  



दिखाया था मुझको कई बार सपना
उसी एक सपने पे वारी मोहब्बत

महीनो किया था मुहब्बत का पीछा
तभी तो हुई थी हमारी मुहब्बत

लिया था जो पहचान कोयल को खोथे
तो कौए को लागी दोधारी मुहब्बत

नहीं पालता माफ़ करता न खुद को
हुई पाल क़े भी बेगारी मोहब्बत

नयी पौध को देख कर लहलहाते
किया याद हमने हमारी मुहब्बत

दिलों में जगा दे मुहब्बत सभी क़े
हमें चाहिए ऐसी प्यारी मुहब्बत

नयी दुल्हनो क़े खयालों जगी जो
दुलारी है कितनी पियारी मुहब्बत  

छुपे घोंसलों में रहें डर क़े बच्चे
लिए चोंच चारा पधारी मुहब्बत

भरी दोपहर में थका सा दिखूं तो
जबीं पोंछ मेरी निहारी मुहब्बत




अच्छा नहीं किया

मैंने  जो  छुप  क़े  रो  लिया अच्छा  नहीं किया
उसने भी  रो  के हँस  दिया  अच्छा  नहीं किया

मुझको  सुनानी  चाहिए  थी  जो  ग़ज़ल  पहले
महफ़िल  में तूने  गा  दिया  अच्छा  नहीं किया

तुमको  ही  याद  करके  रो  रहा  था  जार  जार
तुमने  जो  मुस्करा  दिया  अच्छा  नहीं  किया

मैंने  तेरे  गुमान  पे  सबको  भुला  दिया
तुमने  मुझे  भुला  दिया  अच्छा  नहीं किया

मैं  तो  चला  ही  जा  रहा  था  छोड़  के  दुनियां
तुमने  मुझे  बुला  लिया  अच्छा  नहीं  किया

मैं  कर  रहा  था  कोशिशें  तुमको  हँसाने  की
तुमने  मुझे  रुला  दिया  अच्छा  नहीं किया

Wednesday, December 8, 2010

आवाहन

आवाहन

कहीं ऐसा ना हो ये देश कब्रिस्तान हो जाए
जरूरी है कि अब ठंढी हवा तूफ़ान हो जाए

रहोगे कब तलक सोते ही अब तो नीद से जागो
ना हो ऐसा तुम्हारी सुब्ह ही वीरान हो जाए

करो अब याद अल्लाह राम गुरु को और ईसा को
उठा लो शस्त्र अपने उनका भी सम्मान हो जाए

तुम्हारे घर में बैठा है अभी तक बन क़े जो भाई
ज़रा अब आँख खोलो उसकी भी पहचान हो जाए

किसी भी जाति क़े हो धर्म क़े हो लाल हो माँ क़े
समय अब आ गया तू देश पर कुर्बान हो जाए

अगर अब भी न चेते तो, हमारे देश क़े दुश्मन
कहीं ऐसा न कर दें ये जमी शमसान हो जाए

सपूतों देश क़े मिल क़े सभी बन जाओ तुम अर्जुन
उठा गांडीव फिर से आज सर-संधान हो जाए

खुद अपनी रूह को हैवान ने है मार ही डाला
बचेगा एक ही सूरत कि वो इंसान हो जाए

रहा है चाट अपनी जीभ बहशी खा क़े बच्चों को
नहीं बर्दाश्त अब तो जंग का ऐलान हो जाए

हमारी है ये कोशिश चोट न पहुचे किसी को भी
दुखी हो जो उसे सच्चाई का संज्ञान हो जाए

समझते हैं नहीं कुछ लोग अपने घर को अपना घर
ये हो जाए तो हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान हो जाए

Sunday, December 5, 2010

जाने कब उबरेंगे

याद करता हूँ तुम्हे
आज भी
बीत गए कई दशक,
और कितने बीतेंगे
पर भूल न सकूँगा तुम्हे,
संभव नहीं
नहीं देखी हँसी तेरी हँसी जैसी
देखी न हसीन कोई तेरे जैसी

उस दिन सीढ़ियों पर
उठाया था नकाब तुमने
पहली बार देखा था मैंने निकलता
रात की ओट से एक चाँद
मैंने जो कह दिया था
की तेरे गाल हैं सेब जैसे लाल
याद है.. तुमने किया था क्या कमाल
फेंका था छत से मेरी ओर
एक बड़ा सा चिकना सेब
गिरा था भाभी के सामने
पीठ घुमा के खड़ा हो गया था मैं
जैसे कुछ देखा ही नहीं
पर भाभी तो भाभी होती हैं
ताड़ लिया था, पर बोलीं नहीं
याद है तुम्हे......
आधी रात को खिड़की पे आके
तुम बाल खोल दिया करती थी
और सवारती थी बार बार
उन्ही दिनों मैंने लिखी थीं ये पंक्तियाँ चार
"देखूँ तो झूठे गुस्से का इज़हार करती हो
ना देखूँ तो रुक के इंतज़ार करती हो
आके खिड़की पे ही क्यूँ बाल खोलती हो
बिना मुह खोले कितना झूठ बोलती हो "
पूछ लिया था एक दिन
क्यों इतनी रात में संवारती हो बाल
जवाब था तुम्हारा
रात में बाल संवारने से प्रियतम की उम्र बढ़ती है
और इस तरह जोड़ दिए तुमने
मेरी उम्र में जाने कितने साल
पर अपना भविष्य तो बन के रह गया एक सवाल
सोच सोच तुमको, ले के अपनी कल्पना में
हँसता भी था, रोता भी था
अच्छा लगता था
अपनी सामाजिक मजबूरियाँ तो थीं
पर जाने क्यूँ मैं आश्वस्त था
और तैयार था लड़ने को किसी से भी
क्यों कि मैंने देख लिया था
तुम्हारी आँखों में अपने लिए आँसू
और उस दिन मैंने लिखा था
अपनी डायरी में
"अपने हालात पे जो उनको चश्मे-तर देखा
अकेले दुनियाँ से लड़ने का हौसला अब है"
बड़े होते गए हम दोनों
और हो गयी थी हासिल महारत
पढने में आँखों और इशारों की भाषा
बहुत रोया था उस दिन
जब तुम्हारी आँखों में पढ़ लिया था मैंने
तुम्हारी छटपटाहट और बेबसी को
मैं रोक ना पाया और फूट पड़ा था
भाभी के सामने, और उस दिन
मेरी भाभी मुझे माँ सी दिखी थीं
पर अपनी सीमाओं को जानती थीं
मुझे बताया कि कल वो आयी थी
बहुत रोई थी गिड़गिड़ाई थी
भैया ने उसे प्यार से समझाया था
भाभी ने बताया, धर्म आड़े आया था
उसी दिन से एक प्रश्न
अनुत्तरित है मेरे मन में आज तक
ये धर्म-जाति  के विधान बने हैं हमारे लिए
या हम बने हैं मर कर भी इन्हें निभाने के लिए
स्वीकार नहीं है ऐसा कोई नियम मुझे
जो हमारी जायज खुशियों कि कुर्बानी मांगे
जाने कब उबरेंगे हम इनसे
और जी पायेंगे ज़िन्दगी को
अपनी तरह से

Friday, December 3, 2010

मैं तो मैं हूँ

बहुत हुई राधा और मीरा मुझको मेरा प्यार चैहिये
कब तक मैं खुद को बहलाऊँ मुझको भी अधिकार चाहिए 


जो तुम राम नहीं तो मैं सीता माता कैसे बन जाऊं
क्यों भटकूँ मैं जंगल जंगल क्यों कोई मृग देख रिझाऊं 


क्या मैं केवल मैं बनकर ही रह न सकूंगी इस जीवन में
तुम मेरे बस मेरे हो क्या कह न सकूंगी इस जीवन में 


स्रष्टि संचरण की मैं उद्गम मैं जग का विप्लव भी हूँ 
कभी किसी का आर्तनाद तो कभी मधुर कलरव भी हूँ 


मुझको जो पहचान सका वो मेरा है मैं उसकी हूँ
सबसे पहले मैं तो मैं हूँ फिर मैं चाहे जिसकी हूँ 







Thursday, December 2, 2010

साजन की परछाई

मैं ही भगिनी मैं ही भार्या मैं जननी बन आई हूँ
जो चाहे कह लो मैं अपने साजन की परछाई हूँ

जोहूँ उनकी बाट बिछाऊँ पलकें उनकी राहों में
मेरा सारा दर्द मिटे जब सिमटूं उनकी बाहों में

कौन राम है कौन कृष्ण है मैं तो इनको न जानू
मेरे तो आराध्य देव मेरे प्रियतम हैं ये मानू

क्या बतलाऊँ कैसे साजन बिन हैं मेरे दिन कटते
मेरी तड़प सही न जाती देख मुझे बादल फटते

मेरी जुल्फें देख घनेरे बादल कारे हो जाते
मैं जिसकी भी ओर निहारूँ वारे न्यारे हो जाते

मेरा तेजस मुखमंडल सूरज को भी शर्माता है
दावा सूरज का झूठा वो चंदा को चमकाता है

चंदा होता दीप्तिमान बस देख हमारा ही मुखड़ा
दिन मेरा अहसानमंद अँधियारा रोता है दुखड़ा

कांति-श्रोत हैं मेरे प्रियतम मैं तो बस परछाई हूँ
तन-गागर में प्रियतम-प्रेम-सुधा भरकर बौराई हूँ

मेरे मन की अमराई में प्रेम-सिक्त हैं बौर खिले
साजन से बस मेरे साजन मुझे न कोई और मिले

बालम तुम कैसे रहते हो

मैं अपना दुःख बोलूँ किससे, तुम अपना किससे कहते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

मैं तुम्हरी ही सुध में खोऊँ सारा दिन छुप छुप के रोऊँ
तुम्हरी बतियाँ याद करूँ तो सपने जागूँ कैसे सोऊँ 
मुझको अंक लिए बिन साजन तुम कैसे सोते जागते हो - बालम तुम कैसे रहते हो

रात रात भर चादर झाडूं, तकिये का मैं खोल चढ़ाऊँ
ढँक दूँ दूध गरम सिरहाने फिर बिस्तर को पाँव बढाऊँ
इन सारी बातों को साजन याद कभी क्या तुम करते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

भरी दुपहरी जब छाजन की झिर्री से इक किरन निहारे 
जी करता है चढ़कर उस पर आ जाऊँ मैं पास तुम्हारे
मैं तो हूँ मजबूर सजनवा, तुम तो ऐसा कर सकते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

जब गैया का बछड़ा थन को जोर जोर से उझकाता है
मेरा मन भी सोच सोच कुछ जाने कैसा अकुलाता है
मैं अपने को ही पुचकारूं तुम भी क्या आहें भरते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

तुम्हरी अम्मा सास हमारी, मुझको प्यार बहुत करती हैं
तुम्हे बुलाना तो चाहें वो पर बाबूजी से डरती हैं
मुझको भी उनसे डर लगता, क्या तुम भी उनसे डरते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

मैं भी क्या बोलूँ हे साजन तुमसे ही तो घर चलता है
हम दोनों जलते हैं तब ही इस घर का चूल्हा जलता है
मैं तो अपनी जानूँ साजन, क्या तुम भी, सच में, जलते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

ये सब तो है ठीक बलम पर तुम पाती भी नहीं भेंजते
दिन कट जाता पढ़ कर उनको रातों में उनको सहेजते
जो भी मन में सोच रहे हो, ख़त में सब कुछ लिख सकते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

Wednesday, December 1, 2010

उनके आँसू हकीकत बताते रहे

वो रहें खुश सदा हम मनाते रहे
हम तो काँटों से रिश्ता निभाते रहे

हो न जाए कोई फूल घायल कहीं 
इसलिए उनसे दामन बचाते रहे 

मैंने की कोशिशें भूल जाने की पर 
बारहा वो मुझे याद आते रहे 

करके बर्बाद दुनियाँ मेरी, संगदिल 
जश्ने आबादी अपनी मनाते रहे 

मैंने वादा किया था, निभाऊंगा ही 
कब कहा ऐसा, कहके सताते रहे  

आज मुझसे लिपट कर वो रोये बहुत 
मुझसे अब तक हकीकत छुपाते रहे 

करना ज़ज्बात काबू में आसां नहीं 
उनके आँसू हकीकत बताते रहे 


संकरी है प्रेम गली

संकरी है प्रेम गली
जाने वाले इतने इसमें 
सब को मंजिल न मिली 
संकरी है प्रेम गली


नज़र-ए-बद से बच पाए 
कोई सूरत न मिली 
संकरी है प्रेम गली


कान्हा को पत्नियाँ चार
प्रेमिका एक राधा मिली 
संकरी है प्रेम गली


प्रेम का कारण आकर्षण 
चाहने से प्रेमिका न मिली 
संकरी है प्रेम गली


प्रेम की सीमा मर्यादा 
जिसने लांघा सजा मिली 
संकरी है प्रेम गली


अकेले सच ही जीता 
झूट को जिंदगी न मिली

संकरी है प्रेम गली


प्रेम की चाहत-समर्पण 
वासना को जगह न मिली 
संकरी है प्रेम गली

द्वैत अद्वैत में रहे उलझे 
अपनी परिभाषा न मिली 
संकरी है प्रेम गली


आत्मा परमात्मा मिलन
प्रेम को परिभाषा मिली
संकरी है प्रेम गली 

चाँद की औकात

चाँद को अपना मुखड़ा दिखा दीजिये 
उसकी औकात उसको बता दीजिये


आपका दर तो क्या छोड़ दूँगा जहाँ
देख लूँ, थोडा चिलमन हटा दीजिये


अपनी चाहत को कैसे करूँ मैं फ़ना
मुझको तदवीर कोई बता दीजिये 


ख़ास तदवीर कोई जरूरी नहीं
गर भुलाना हो, उनको भुला दीजिये


ऐन उस वक़्त जब वो इशारा करें
अपनी नजरों को उनसे हटा दीजिये


खूबसूरत हो तुम तो जवाँ मैं भी हूँ
और कोई कमी हो बता दीजिये 


जान पाए कहाँ एक दूजे को हम
जानिये हमको, खुद का पता दीजिये 


सोच लो, जो भी जी चाहे, मेरे लिए 
अपने बारे में भी फैसला दीजिये 


एक इंसान हूँ, मैं भी रखता हूँ दिल 
मुझसे, अपने को, इक दिन मिला दीजिये


चाहतें मेरी मुझसे परेशान हैं
खुद से मिलने का उनको रजा दीजिये 


वो जो गुमराह थे काशी–काबा गये 
“शेष” को अपने दर का पता दीजिये