चाँद को अपना मुखड़ा दिखा दीजिये
उसकी औकात उसको बता दीजिये
आपका दर तो क्या छोड़ दूँगा जहाँ
देख लूँ, थोडा चिलमन हटा दीजिये
अपनी चाहत को कैसे करूँ मैं फ़ना
मुझको तदवीर कोई बता दीजिये
ख़ास तदवीर कोई जरूरी नहीं
गर भुलाना हो, उनको भुला दीजिये
ऐन उस वक़्त जब वो इशारा करें
अपनी नजरों को उनसे हटा दीजिये
खूबसूरत हो तुम तो जवाँ मैं भी हूँ
और कोई कमी हो बता दीजिये
जान पाए कहाँ एक दूजे को हम
जानिये हमको, खुद का पता दीजिये
सोच लो, जो भी जी चाहे, मेरे लिए
अपने बारे में भी फैसला दीजिये
एक इंसान हूँ, मैं भी रखता हूँ दिल
मुझसे, अपने को, इक दिन मिला दीजिये
चाहतें मेरी मुझसे परेशान हैं
खुद से मिलने का उनको रजा दीजिये
वो जो गुमराह थे काशी–काबा गये
“शेष” को अपने दर का पता दीजिये
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