Monday, February 28, 2011

२६-०२-११

जिंदगी घुट के चलानी हो गयी 
लाश अपनी ही जलानी हो गयी 

दिन हुआ फिर वक्त से लड़ने चले 
याद उनकी रातरानी हो गयी 

जो शुरू की थी सुनानी रात को 
खत्म जाने कब कहानी हो गयी 

"वो किसी से कम नहीं", ऐंठे रहे   
बस यही तो बदगुमानी हो गयी

भक्त भगवन से अलग होता नहीं 
इस लिए मीरा दिवानी हो गयी 

Wednesday, February 23, 2011

साहित्यिक अत्याचार


खुशियाँ दे कर मैं गम लूँ मुझको दुनिया लाचार कहे 
मेरा सुख क्या समझे नादां जो मुझ को बेजार कहे 
दुनिया को जो धोखा देते उनकी पूजा होती है 
हम कैसे इस बात को मानें कहने को संसार कहे

बिन सोचे समझे जो लिखते, बस तुकबंदी कर देते 
मुझ जैसा अदना उसको साहित्यिक अत्याचार कहे 

उसका सुख मेरा भी सुख है उसका दुःख मेरा दुःख है 
इक दूजे पर हम हों अर्पण मन का इक इक तार कहे 

बच्चे गर वो कर जाएँ जिसकी अभिलाषा मन में हो  
तो हर कोई खुश हो अपने सपने को साकार कहे 

Monday, February 21, 2011

आरजू

मेरी आरजू, ले दुश्मनी को साथ, मर जाऊँ
जो हैं आज दुश्मन, मैं उन्हें भी दोस्त कर, जाऊँ

'जालिम है ज़माना', सुन रहे हैं हम जमाने से
'हम से है ज़माना' इस कथन को सत्य कर जाऊँ

जिसको पूजते, हम पूजते, चाहे रहे नाखुश
कर के हर जतन, नाराजगी को दूर कर जाऊँ

छोटा हो बड़ा हो, दोस्ती में उम्र बेमतलब
पीढ़ी के लिए इस सत्य को उनवान कर कर जाऊँ

हम सहते रहे, हँसते रहे, बढते रहे आगे
इसको जान के ही वो सुधर जाएँ, मैं तर जाऊँ

जाना है तो जाऊँगा, खुशी से, मैं खुदा के घर
अपने बाप से मिलना है मुझको, क्यों मैं डर जाऊँ

पहलू में तुम्हारे ही कटे हैं दिन बुरे अच्छे
रुखसत हो रहा हूँ, आज क्यों मैं और दर जाऊँ

जो दुश्मन बना है आज था वो भी कभी अपना
उसने हैं किये एहसान, कैसे मैं मुकर जाऊँ

रोये या हँसे कोई, फर्क क्या 'शेष' को पड़ता
रोया जो कभी मेरे लिए, हँस दे तो घर जाऊँ



Friday, February 18, 2011

शकुनी की चौसर

लूँ बना रहबर, मुझे कोई मुनव्वर तो मिले 
डूब तो जाऊं मैं, गहरा कोई सागर तो मिले 

लग तो जायेगी किनारे कश्ती लहरों में फंसी 
दे उठा माफिक लहर तूफां-ए-सागर तो मिले 

कौन जीना चाहता मर मर के, टूटा दिल लिए 
चाक करदे जो जिगर वो तेज खंजर तो मिले 

अब महाभारत कभी होगी नहीं, कैसे कहूं 
द्रौपदी अब हो न हो, शकुनी की चौसर तो मिले 

हार हो या जीत इतना मायने रखता नहीं 
जो भिड़े हमसे उसे माकूल टक्कर तो मिले 

भाइयों की एकता में विष पड़ोसी घोलते 
जायेंगे वो भी सुधर 'तेली का तीसर' तो मिले 

आज आँखें भर गयीं ऐसा मुझे मंज़र दिखा 
हाँथ में थीं अस्थियाँ पर लोग हंसकर तो मिले 

Tuesday, February 15, 2011

आवाहन

मैं करता हूँ आवाहन
उद्देश्य है पावन
आज से और अभी से
आप प्रण कर लें
प्रतिदिन एक हत्या करेंगे
मौका मिले तो करें बलात्कार भी
माया की छाया में
आप सुरक्षित रहेंगे
आज तक जो आपका कुत्सित मन
जमीर के नीचे दब कर कर न पाया हो
सब कर जाइए
वर्तमान के रहनुमाओं को
अपना और अपने बच्चों का आदर्श बनाइये
भूल से भी गाँधी सुभाष का न लें नाम
अन्यथा पीढ़ी बिगड जायेगी
कुछ ही दिनों में आप पूरी कर लेंगे
अपनी सारी अधूरी इच्छाएं
नाम और सोहरत पायेंगे
तिरंगे को पैरों नीचे दबाएंगे
फिर से मुद्दे पर आते हैं
पास पड़ोस में क्यों झांके
घर की इज्ज़त में ही सेंध लगाते हैं
क्या कहा? उम्र.......
भूल गए क्या?
"महाजनो यें गतः स पन्थ:"
राठोर साहब से प्रेरणा लीजिए
बेशर्मी से हँसते रहिये
ज़मीर? अरे मारिये गोली....
ऊपर वाला मजबूर कर रहा है आपको
आपका क्या दोष?
उसके पैमाने पर अभी धर्म की ग्लानि नहीं हुई है
अतः आइये हम सब मिलकर
इतना अधर्म करें
की धर्म की ग्लानि उसे दिखने लगे
और धर्म के अभ्युत्थान के लिए .
फिर से उसका अवतरण हो
यदि इश्वर-दर्शन चाहते हैं इस जीवन में
तो जम कर अधर्म करें
इश्वर के हांथो मरें
मोक्ष प्राप्त करें

Sunday, February 13, 2011

आस्तीं के सांप

सांप इतने आस्तीं में पल गए
हम बदल कर जैसे हो संदल गए

प्यास ऐसी दी समंदर ने हमें
लब हमारे खुश्क होकर जल गए

चाँद निकला रात में नंगे बदन
देवता सब छोड़ कर पीपल गए

इश्क नेमत है, क़ज़ा है या भरम
फैसले कितने इसी पर टल गए

आज रोया हूँ बहुत मैं रात भर
बन के आँसू सारे अरमां गल गए

रौनकें चेहरों कि उडती देख ली
जब जुबां से सच के गोले चल गए


बेअसर होती गयी हर बद्दुआ
हम दुआ देने कि बाज़ी चल गए

हो गए बर्बाद कोई गम नहीं

"शेष" सब भाई भतीजे पल गए 

Monday, February 7, 2011

परवाज़


हवा जो आ रही नम आज कुछ जादा ही भाती है
किसी की आँख का सारा समंदर सोंख आती है

वो जब आकाश को परवाज़ क़े काबिल नहीं पाती
तो चिड़िया खुद ब खुद पिंजरे में आकर बैठ जाती है

तडपता जिस्म मेरा काश शीशे का बना होता
उसे दिखता कि उसकी याद मेरा दिल जलाती है

उसे मालूम है गमखार उसका जन्म से अंधा
मगर फिर भी उसी क़े सामने आँसू बहाती है

हमारे दर्द को कोई समझ ले है ये नामुमकिन
कोई भी आँख छाले रूह क़े कब देख पाती है

किसी के इस गुमां पर आज मन ही मन मैं हंसता हूँ
कि मैं दिन रात रोता हूँ, कि उनकी याद आती है

तपिश चाहत में हो औ सोज हो ज़ज्बात में पैहम 
तो जिद की बर्फ धीरे ही सही पर गल तो जाती है

किसी भी राह को चुनिए अगर ईमानदारी से
तो हर रस्ते पे चलकर मंजिले-मक़सूद आती है

खुदा तू ही बता किस नाम से तुझको पुकारूं मैं
तेरे बन्दों को समझाने में मुश्किल पेश आती है

Thursday, February 3, 2011

क्या होगा

हमारे सब्र का जो बाँध ही हिल जाय क्या होगा
इशारा क़त्ल का मुंसिफ से ही मिल जाय क्या होगा

किसी ने कह दिया कुछ आप मेरे बन गए दुश्मन
वो बेगैरत हमारे साथ घुल मिल जाय क्या होगा

कहाँ देखा किसी ने आज तक तेरी हँसी जन्नत
किसी दिन ये भरम गर धूल में मिल जाय क्या होगा

वो गीता हो कि हो कुरआन या गुरु ग्रन्थ साहब हो
हमारे घर में सब की एक प्रति मिल जाय क्या होगा

लिखा करता हूँ मैं यूँ ही ग़ज़ल बन क़े तेरा तालिब
तुफैली सोज औ स्याही मुझे मिल जाय क्या होगा

पढ़ा करता हूँ ग़ज़लें मैं तो आलम औ मुनव्वर की
अवस्थी सा कोई रहबर हमें मिल जाय क्या होगा

निराले बन गए तुम जब मिला रहबर तुम्हे कोई
वही रहबर तुम्हे पीछे मेरे मिल जाय क्या होगा

Tuesday, February 1, 2011

बसंत आने को है

बसन्ती आग में मुझको जलाओ
न लो अंगडाइयाँ, अब पास आओ

दिखेंगे बौर अब अमराइयों पर
उन्हें सोचो, लजाओ, मुस्कराओ

रखोगे मन में कब तक चाह मन की
नयी कोपल दिखेंगी, मन बनाओ

टहनियाँ गले मिल कुछ पूंछती हैं
कि पहले तुम बताओ, तुम बताओ

अजब कुदरत का देखो ये नज़ारा
जियो हर पल को औ खुशियाँ मनाओ