Thursday, December 2, 2010

बालम तुम कैसे रहते हो

मैं अपना दुःख बोलूँ किससे, तुम अपना किससे कहते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

मैं तुम्हरी ही सुध में खोऊँ सारा दिन छुप छुप के रोऊँ
तुम्हरी बतियाँ याद करूँ तो सपने जागूँ कैसे सोऊँ 
मुझको अंक लिए बिन साजन तुम कैसे सोते जागते हो - बालम तुम कैसे रहते हो

रात रात भर चादर झाडूं, तकिये का मैं खोल चढ़ाऊँ
ढँक दूँ दूध गरम सिरहाने फिर बिस्तर को पाँव बढाऊँ
इन सारी बातों को साजन याद कभी क्या तुम करते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

भरी दुपहरी जब छाजन की झिर्री से इक किरन निहारे 
जी करता है चढ़कर उस पर आ जाऊँ मैं पास तुम्हारे
मैं तो हूँ मजबूर सजनवा, तुम तो ऐसा कर सकते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

जब गैया का बछड़ा थन को जोर जोर से उझकाता है
मेरा मन भी सोच सोच कुछ जाने कैसा अकुलाता है
मैं अपने को ही पुचकारूं तुम भी क्या आहें भरते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

तुम्हरी अम्मा सास हमारी, मुझको प्यार बहुत करती हैं
तुम्हे बुलाना तो चाहें वो पर बाबूजी से डरती हैं
मुझको भी उनसे डर लगता, क्या तुम भी उनसे डरते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

मैं भी क्या बोलूँ हे साजन तुमसे ही तो घर चलता है
हम दोनों जलते हैं तब ही इस घर का चूल्हा जलता है
मैं तो अपनी जानूँ साजन, क्या तुम भी, सच में, जलते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

ये सब तो है ठीक बलम पर तुम पाती भी नहीं भेंजते
दिन कट जाता पढ़ कर उनको रातों में उनको सहेजते
जो भी मन में सोच रहे हो, ख़त में सब कुछ लिख सकते हो  - बालम तुम कैसे रहते हो

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