Friday, December 3, 2010

मैं तो मैं हूँ

बहुत हुई राधा और मीरा मुझको मेरा प्यार चैहिये
कब तक मैं खुद को बहलाऊँ मुझको भी अधिकार चाहिए 


जो तुम राम नहीं तो मैं सीता माता कैसे बन जाऊं
क्यों भटकूँ मैं जंगल जंगल क्यों कोई मृग देख रिझाऊं 


क्या मैं केवल मैं बनकर ही रह न सकूंगी इस जीवन में
तुम मेरे बस मेरे हो क्या कह न सकूंगी इस जीवन में 


स्रष्टि संचरण की मैं उद्गम मैं जग का विप्लव भी हूँ 
कभी किसी का आर्तनाद तो कभी मधुर कलरव भी हूँ 


मुझको जो पहचान सका वो मेरा है मैं उसकी हूँ
सबसे पहले मैं तो मैं हूँ फिर मैं चाहे जिसकी हूँ 







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