Sunday, July 28, 2013

तू नाम पर उसीके

तू नाम पर उसी के ही भीख मांगता है
जिसने तुझे मशक़्क़्त को दास्तगह किया है

आंखों मे शाह के भी गड़ता है किरकिरी सा
वल्लाह देखिये क्या जर्रे का हौसला है

कमजोर आदमी को झुक कर उठाइये तो
हमको तो हर मुदावा इस मश्क़ में मिला है

आज़ाद मुश्किलों से है कौन इस ज़हां में
इनका तो हल भी इनसे होकर ही मिल सका है

हर रास्ते की होती है मुख्तलिफ़ सी मंजिल
अब सोच लो की तुमने क्या रास्ता चुना है

हर एक को दिया है यकसाँ मुक़द्दर उसने
दस्तेकरम से ही बस इसका क़ुफ़ुल खुला है

ऐ अहले इल्म शाइर रोज़ी की फ़िक्र भी कर
भूखे भजन तो भक्तों से भी नहीं हुआ है

रोकेगा कौन, देखो ज़न्नत के ख्वाब तुम भी
दोज़ख में पाँव रखना मुमकिन कहाँ रहा है 

Tuesday, July 23, 2013

ये दिल गरीब क्या करता

दौरे तनहाई में ये दिल गरीब क्या करता
शायरी जो नहीं तो मैं अदीब क्या करता

आपका शौक़ है बेवज़ह जब ख़फ़ा होना
दोस्त बनता न मेरा तो रक़ीब क्या करता

ज़ख्म ताज़ा हो तो मरहम भी दर्द देता है
फिक्रमंदी में बेचारा तबीब क्या करता

चाहे ग़म में मुझे तुमने ही खुद ढकेला जब
मौत आनी ही थी मैं बदनसीब क्या करता

दोस्त यूँ ही तो कभी हो नहीं जाता दुश्मन
मिल गया छाछ से तो फिर हलीब क्या करता

हिज्र की आग को सहना हुआ जो नामुमकिन
चाँद उतरा समंदर में मुसीब क्या करता

आँखें आमादा थीं उनकी, सच बताने के लिए

aankheN aamaada thiN unkee, sach bataane ke liye
log jo pursidh me the dikhne dikhaane ke liye

kitna jhukta hai zameeN ka pyaar paane ke liye
aasmaaN ko dee bulandi aazmaane ke liye

ham to haiN taiyaar seene se lagaane ke liye
tum badhaa do haath agar haNskar milaane ke liye

rakhshe-dil ka josh fir thoda badhaane ke liye
aid maine fir lagaa di jeet jaane ke liye

jo hanse to bas kisee ka dil jalaane ke liye
wo taras jaate haiN aksar muskaraane ke liye

zere-daam aaye to bas saiyyaad ka muh dekh kar
varna ham aur par hilaate ek daane ke liye

gham sahe, aaNsoo bahaaye, dar-b-dar firte rahe
kee har ik koshish makaaN ko ghar banaane ke liye

आँखें आमादा थीं उनकी, सच बताने के लिए
लोग जो पुर्सिश में थे दिखने दिखाने के लिए

कितना झुकता है ज़मीं का प्यार पाने के लिए
आसमां को दी बुलंदी आज़माने के लिए

हम तो हैं तैयार सीने से लगाने के लिए
तुम बढ़ा दो हाथ अगर हंस कर मिलाने ले लिए

रख्शे-दिल का जोश फिर थोड़ा बढाने के लिए
एड़ मैंने फिर लगा दी, जीत जाने के लिए

जो हँसे तो बस किसी का दिल जलाने के लिए
वो तरस जाते हैं अक्सर मुस्कराने के लिए

ज़ेरे-दाम आये तो बस सैय्याद का मुह देखकर
वर्ना हम और पर हिलाते एक दाने के लिए?

ग़म सहे, आँसू बहाए, दर-ब-दर फिरते रहे
की हर इक कोशिश मकां को घर बनाने के लिए

Monday, July 22, 2013

मिल ही जायेगा तुझे

मिल ही जाएगा तुझे तेरा भी सानी एक दिन
चूर हो जायेगी तेरी बदगुमानी एक दिन

चूकना मत जब उरूजे-बख्त से मौक़ा मिले
खुद फ़ना होती है माज़ी की निशानी एक दिन

जो तसव्वुर रुख पे तेरे मुनअकिस भी हैं नहीं
खुद ब खुद होंगे अयाँ तेरी ज़ुबानी एक दिन

बदमुआमलगी अगर है राब्तों में उस्तुवार
टूट ही जायेंगे रिश्ते नागहानी एक दिन

ज़िन्दगी में कौन रह पाया तवक्कुल आजतक
ज़ोर से अपने मिलेगी शादमानी एक दिन

पेश रौ बन कर सितम परवर दगा की देख लो
होगी तुम पर भी खुद की मेहरबानी एक दिन

देख कर गुलचीं को गुल पर मुस्करा मत ऐ कली
हुस्न पर तेरे भी आयेगी जवानी एक दिन


ज़ख़्म दिल का कहीं न भर जाए

ज़ख्म दिल का कहीं न भर जाए
और तू ज़ेहन से उतर जाए

आ बढ़ा दे मेरी परेशानी
रायगाँ क्यूँ तेरा हुनर जाए

लत लगी तेरे तल्ख़  लहज़ों की
क्यूँ मैं चाहूँ कि तू सुधर जाए

हर नफस में तुम्हारी खुशबू हो
फिर भले नब्ज़ ही ठहर जाए

है नवेद आ के तू मकीं हो जा
क़ब्ल इसके कि दिल मुकर जाए

तू जो पिघले तो मैं बहूँ जी भर
और दरिया चढ़ा उतर जाए

तू गया भी तो जैसे पर कोई
बीच परवाज़ में क़तर जाए

रूह पर तू हमारे क़ाबिज़ है
ज़िस्म फिर क्यू इधर उधर जाए

ऐसे हालात को जिया मैंने
और कोई जिए तो मर जाए 

Tuesday, July 16, 2013

रब्ते-बाहम में तो ज़ज्बाते निहां हैं नारवा

रब्ते-बाहम में तो ज़ज्बाते निहां हैं नारवा
पुरखुलूस अहबाब में रुस्वाइयां हैं नारवा

बादिले-नाख्वास्ता कुछ दाइमी होता नहीं
गर्दिशे-अय्याम से पसपाइयां हैं नारवा

ऐ असीराने कफ़स कोसो न तुम तक़दीर को
अब फ़िजाओं में तवक्को-ए-अमां हैं नारवा

आज के इस इन्तहाई तीरगी के दौर में
ज़ेहन में फिरती हुई परछाइयां हैं नारवा

जब तुम्हारे दर पे आने का खुदा हक है हमें
फिर तो रस्ते में मिली रुस्वाइयां हैं नारवा

रौनकें महफ़िल की तुमको शाद जब करतीं नहीं
फिर हमारी बज़्म की रंगीनियाँ हैं नारवा

ज़िंदगी ही हो गयी साझा तुम्हारे साथ जब
फिर हिसाबाते-ज़रे-सूडो-जियां हैं नारवा

Thursday, July 11, 2013

तुम्हारी ज़ुल्फ़ चेहरे पर ठहर जाती तो अच्छा था

तुम्हारी ज़ुल्फ़ चेहरे पर ठहर जाती तो अच्छा था
अगर ये ईद का ऐलान करवाती तो अच्छा था

दिखा करती है बेकल चांदनी जो बाम पर तनहा

किसी दिन काश जीने से उतर आती तो अच्छा था

खुदा  तूने बिगाड़ा है हमें देकर धड़कता दिल

सुधरने की भी कुछ सूरत नज़र आती तो अच्छा था

तलातुम* में अगर तुम दफ'अतन** मुझसे लिपट जाते     *लहरों के हिचकोले ** अचानक 

तो फिर गिर्दाब* में कश्ती उतर जाती तो अच्छा था           * भँवर

सियह-फाम अब्र* हैं बादेसबा** है साथ तुम भी हो             *काले घने बादल ** ठंढी बयार 

इसी दम क़हर हम पर वर्क़ अगर ढाती तो अच्छा था

रक़ीबों के ज़रीये भेजकर जिसको बहुत खुश हो

हमारे पास तक वो बात अगर आती तो अच्छा था

तेरी खातिर रफ़ाक़त* कर तो लूं मैं  दुश्मनों से भी             *दोस्ती 

मेरी हालत पे तेरी आँख भर आती तो अच्छा था

दस्तयाबी को झुक ज़र्फे शज़र तो देखिये

दस्तयाबी को झुका ज़र्फे शज़र तो देखिये 
बर्ग के परदे में पोशीदा समर तो देखिये 

तितलियों के रंग से अत्फाल खौफ आलूद हैं 
मज़हबी तालीम का उनपर असर तो देखिये 

मुत्मइन है आखिराश मिल जायेगी मंजिल उसे 
उस मुसाफिर का ज़रा रख्तेसफ़र तो देखिये 

क्यूँ बिना परखे कहा जाए किसी को तंग-दिल 
सीप के अन्दर निहाँ यकता गुहर तो देखिये 

रात को फुटपाथ पर जो सो गया था चैन से 
सुब्ह के अखबार में उसकी खबर तो देखिये 

शाद है जो घर बनाकर दूसरों  के वास्ते
आप उस तामीरगर का भी बसर तो देखिये 

टूट जाने पर भी सच का साथ  छोड़ेगा नहीं
आइने की सादगी को इक नज़र तो देखिये

Saturday, July 6, 2013

आँखों में तुगियानी देख

आँखों में तुगियानी देख 
फिर उनमे हैरानी देख 

साए को भी छीन लिया 
तम की कारस्तानी देख 

क़ुदरत ने आगाह किया 
फैजे ना-फ़रमानी देख 

नौपैदा को रोने दे 
चेहरों पर नूरानी देख 

अफसुर्दा जो चेहरा है 
उस पर लिखी कहानी देख

वो खुद पर भी हंसता है 
पागल की नादानी देख 

पहले से है गोर खुदी 
रिश्तों की उरियानी देख 

हाथ दिया है क़ुदरत ने 
अपना दाना-पानी देख 

रानी पर है फ़िदा गुलाम 
ये रिश्ता लासानी देख 

सच के रोने धोने दे 
हंसती बे-ईमानी देख 

खुद को राजा कहता है 
मन की ये मनमानी देख


भीगी आँखों ने मेरी ऐसा भी मंज़र देखा

भीगी आँखों ने मेरी ऐसा भी मंज़र देखा
बहता दरियाओं में लाशों का समंदर देखा


रोक पाया है कहाँ क़हर कोई क़ुदरत का
हारता ख़ाक से भी जिस्मे तनावर देखा


बेहिसी देख के इन्सां की यूँ फटे बादल
हमने कोहसार का बर्बाद कलेवर देखा


जौरे इंसान को क़ुदरत भी यूँ सहती कब तक
बदला बदला सा फ़जाओं का भी तेवर देखा


लोग गर्क़ाब हुए, दफ्न हुए जीते जी
डूबता संग के दरिया में शनावर देखा


ज़िन्दगी हार गयी मौत से लड़ते लड़ते
आस की लाश के पैरों में महावर देखा


मुन्तजिर थे जो खुदा तेरी फ़क़त रहमत के
दर बदर होते उन्हें तेरे ही दर पर देखा


अब यकीं कैसे करेगा वो खुदाई पर भी
जिनकी आँखों ने तेरा अक्से सितमगर देखा


अब न माज़ी ही बचा है न रहा मुस्तक़बिल
मौत ने आज का भी नक़्श मिटाकर देखा