Thursday, July 11, 2013

तुम्हारी ज़ुल्फ़ चेहरे पर ठहर जाती तो अच्छा था

तुम्हारी ज़ुल्फ़ चेहरे पर ठहर जाती तो अच्छा था
अगर ये ईद का ऐलान करवाती तो अच्छा था

दिखा करती है बेकल चांदनी जो बाम पर तनहा

किसी दिन काश जीने से उतर आती तो अच्छा था

खुदा  तूने बिगाड़ा है हमें देकर धड़कता दिल

सुधरने की भी कुछ सूरत नज़र आती तो अच्छा था

तलातुम* में अगर तुम दफ'अतन** मुझसे लिपट जाते     *लहरों के हिचकोले ** अचानक 

तो फिर गिर्दाब* में कश्ती उतर जाती तो अच्छा था           * भँवर

सियह-फाम अब्र* हैं बादेसबा** है साथ तुम भी हो             *काले घने बादल ** ठंढी बयार 

इसी दम क़हर हम पर वर्क़ अगर ढाती तो अच्छा था

रक़ीबों के ज़रीये भेजकर जिसको बहुत खुश हो

हमारे पास तक वो बात अगर आती तो अच्छा था

तेरी खातिर रफ़ाक़त* कर तो लूं मैं  दुश्मनों से भी             *दोस्ती 

मेरी हालत पे तेरी आँख भर आती तो अच्छा था

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