Thursday, July 11, 2013

दस्तयाबी को झुक ज़र्फे शज़र तो देखिये

दस्तयाबी को झुका ज़र्फे शज़र तो देखिये 
बर्ग के परदे में पोशीदा समर तो देखिये 

तितलियों के रंग से अत्फाल खौफ आलूद हैं 
मज़हबी तालीम का उनपर असर तो देखिये 

मुत्मइन है आखिराश मिल जायेगी मंजिल उसे 
उस मुसाफिर का ज़रा रख्तेसफ़र तो देखिये 

क्यूँ बिना परखे कहा जाए किसी को तंग-दिल 
सीप के अन्दर निहाँ यकता गुहर तो देखिये 

रात को फुटपाथ पर जो सो गया था चैन से 
सुब्ह के अखबार में उसकी खबर तो देखिये 

शाद है जो घर बनाकर दूसरों  के वास्ते
आप उस तामीरगर का भी बसर तो देखिये 

टूट जाने पर भी सच का साथ  छोड़ेगा नहीं
आइने की सादगी को इक नज़र तो देखिये

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