बहता दरियाओं में लाशों का समंदर देखा
रोक पाया है कहाँ क़हर कोई क़ुदरत का
हारता ख़ाक से भी जिस्मे तनावर देखा
बेहिसी देख के इन्सां की यूँ फटे बादल
हमने कोहसार का बर्बाद कलेवर देखा
जौरे इंसान को क़ुदरत भी यूँ सहती कब तक
बदला बदला सा फ़जाओं का भी तेवर देखा
लोग गर्क़ाब हुए, दफ्न हुए जीते जी
डूबता संग के दरिया में शनावर देखा
ज़िन्दगी हार गयी मौत से लड़ते लड़ते
आस की लाश के पैरों में महावर देखा
मुन्तजिर थे जो खुदा तेरी फ़क़त रहमत के
दर बदर होते उन्हें तेरे ही दर पर देखा
अब यकीं कैसे करेगा वो खुदाई पर भी
जिनकी आँखों ने तेरा अक्से सितमगर देखा
अब न माज़ी ही बचा है न रहा मुस्तक़बिल
मौत ने आज का भी नक़्श मिटाकर देखा
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