Thursday, February 3, 2011

क्या होगा

हमारे सब्र का जो बाँध ही हिल जाय क्या होगा
इशारा क़त्ल का मुंसिफ से ही मिल जाय क्या होगा

किसी ने कह दिया कुछ आप मेरे बन गए दुश्मन
वो बेगैरत हमारे साथ घुल मिल जाय क्या होगा

कहाँ देखा किसी ने आज तक तेरी हँसी जन्नत
किसी दिन ये भरम गर धूल में मिल जाय क्या होगा

वो गीता हो कि हो कुरआन या गुरु ग्रन्थ साहब हो
हमारे घर में सब की एक प्रति मिल जाय क्या होगा

लिखा करता हूँ मैं यूँ ही ग़ज़ल बन क़े तेरा तालिब
तुफैली सोज औ स्याही मुझे मिल जाय क्या होगा

पढ़ा करता हूँ ग़ज़लें मैं तो आलम औ मुनव्वर की
अवस्थी सा कोई रहबर हमें मिल जाय क्या होगा

निराले बन गए तुम जब मिला रहबर तुम्हे कोई
वही रहबर तुम्हे पीछे मेरे मिल जाय क्या होगा

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