Friday, February 18, 2011

शकुनी की चौसर

लूँ बना रहबर, मुझे कोई मुनव्वर तो मिले 
डूब तो जाऊं मैं, गहरा कोई सागर तो मिले 

लग तो जायेगी किनारे कश्ती लहरों में फंसी 
दे उठा माफिक लहर तूफां-ए-सागर तो मिले 

कौन जीना चाहता मर मर के, टूटा दिल लिए 
चाक करदे जो जिगर वो तेज खंजर तो मिले 

अब महाभारत कभी होगी नहीं, कैसे कहूं 
द्रौपदी अब हो न हो, शकुनी की चौसर तो मिले 

हार हो या जीत इतना मायने रखता नहीं 
जो भिड़े हमसे उसे माकूल टक्कर तो मिले 

भाइयों की एकता में विष पड़ोसी घोलते 
जायेंगे वो भी सुधर 'तेली का तीसर' तो मिले 

आज आँखें भर गयीं ऐसा मुझे मंज़र दिखा 
हाँथ में थीं अस्थियाँ पर लोग हंसकर तो मिले 

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