Friday, April 26, 2013

बिखरने का सही मौसम यही है

सबा अब बादे सर सर बन गयी है
बिखरने का सही मौसम यही है

हदे सहरा सराबों से घिरी है
तो फिर हर सू वहाँ क्यूँ तिश्नगी है

पड़ेगी अब उन्हें मेरी जरूरत
अना की बर्फ जो गलने लगी है

जो टूटेगा खला से इक सितारा
तो समझूंगा जगह मेरी बनी है

खुदाया और इक सूरज बना दे
ज़मीं पर इन्तहाई तीरगी है

हमारे दिल की ये तलबे अज़ीयत
मुहब्बत की हक़ीक़ी बानगी है

मुनासिब है सज़ाए मौत हमको
गवाही खुद हमारे सर ने दी है

बहार आयी तो संवरी यौवना सी
शज़र में खुद-पसंदी आ गयी है

अंधेरों ने इन्हें लूटा है शब भर
सितारों की चमक जाती रही है

करे कितनी भी मह आराइशें पर
कमी खुर्शीद की हर शब खली है

Saturday, April 20, 2013

बादलों ने यूँ शरारत चाँद से की रात भर


बादलों ने यूँ शरारत चाँद से की रात भर 
चांदनी फिरती रही ओढ़े उदासी रात भर 

बर्फ मिलकर लाश से रोती रही थी रात भर 
पर तसव्वुर में दिए के ज़िंदगी थी रात भर 

आँखों में आंसू लिए वो मुस्करा कर चल दिए 
और सुलझाते रहे हम ये पहेली रात भर 

वक़्त की आंधी से मैं तो यूँ कभी हारा नहीं 
ख्वाब गर्द आलूद देते हैं दिखाई रात भर 

प्यार करता है हमें वो जाते जाते कह गया 
और कानो में बजी इक धुन सुरीली रात भर 

कैसे मुबहम नक्श हैं ज़हने मुसव्विर में बने 
वो बनाता रह गया तस्वीर तेरी रात भर 

खाब मेरे जब पहुचने को हुए अंजाम तक 
बारहा टूटी निगोड़ी नीद मेरी रात भर 

आखिरी दिन था जो गुजरा मान कर इसको ही सच
आज मैं लिखता रहा अपनी कहानी रात भर   

Saturday, April 6, 2013

इंसानियत की जिसमे मुक़द्दस शमीम है

हक़ है ज़फर पे, खुद वो अमिम-ओ-अलीम है
इंसानियत की जिसमे मुक़द्दस शमीम है

उसमे ही वस्ल हो जा जिसे चाहता है तू
हर्फ़-इ-अलिफ़ तो यूँ ही नहीं यूँ अज़ीम है

चेहरा जो मेरा देखके हालात जान ले
शाने पे रख दे हाँथ वो मेरा नदीम है

वो खाब मेरे जान के मेरे कहे बगैर
ताबीर बन के साथ है, इतना अज़ीम है

जो नेमतें खुद की नहीं प् सका कभी
इंसान वो ही अस्ल में होता यतीम है

वज्ह-ए-शिक़स्ते सख्त हुईं बदगुमानियां
है बा'ज़फर वो जिसमे खुदाई वसीम है

खुद अपने बाजुओं पे है मुझको यकीन यूँ
हांथों पे मेरे मेरा मुक़द्दर रक़ीम है

वो बेगुनाहियों की सज़ा पा रहे हैं क्यूँ
क्या मुफलिसी भी खल्क़ में वजह-ए-रजीम है

यूँ आईने को देख के मायूस हो न तू
तुझसे बिछड़ के दिल तो मेरा भी हतीम है


Wednesday, April 3, 2013

आज हँसता रहा आसमां देर तक

आज हँसता रहा आसमां देर तक
और रोती रहीं बदलियाँ देर तक

कुछ हुई आज जंगे जुबां देर तक
खामुशी फिर रही दरमियां देर तक

थे सुलगते हुए इक्तिरां देर तक
देखते ही रहे हम धुआं देर तक


कर भले तू पजीरइयां देर तक

पर टिकेंगी न रानाइयाँ देर तक


जब कहा उसने "तुम थे कहाँ देर तक"
मेरी ज़द में था बागे जिनां देर तक

ज़हन में थी तेरी दास्तां देर तक
मैं भिगोता रहा आस्तां देर तक

थी न साथ अपनी परछाइयाँ देर तक
ऐसे पसरी थीं तन्हाईयाँ देर तक


तेरी  महफ़िल की रंगीनियाँ देखकर
था खड़ा मैं लिए अर्मुगां देर तक


ज़िंदगी का बड़ा बोझ काँधे पे है
रख न पायेंगे तीरो कमां देर तक

आंधियों बिजलियों से न डर तू बशर 
टिक न पायेंगी ये बदगुमां देर तक

मुन्तज़िर एहतरामे बहाराँ हैं हम
कब रहा है ये दौरे खिजाँ देर तक

जान पाया न अफ्सुर्दगी का सबब
सोचकर था फलाँ या फलाँ देर तक

एक शमसीर क्या हाँथ में आ गयी
ले के बैठे रहे वो फसां देर तक

रंज़ो ग़म तो बयाँ हम नहीं कर सके
लडखडाती रही थी जुबां देर तक

आज ज़न्नत का मुझको नज़ारा दिखा
मेरे पहलू में था दिलसिताँ देर तक

मैं बस अखलाक़ अपने निभाता रहा
था मुखातिब वो नामेहरबां देर तक

मेरे अश्कों ने मुझसे किनारा किया
और जलते रहे जिस्मो जां देर तक

शब सहर तक ही रहती है क्यूँ आखिरश
की चिरागों ने सरगोशियाँ देर तक