Wednesday, April 3, 2013

आज हँसता रहा आसमां देर तक

आज हँसता रहा आसमां देर तक
और रोती रहीं बदलियाँ देर तक

कुछ हुई आज जंगे जुबां देर तक
खामुशी फिर रही दरमियां देर तक

थे सुलगते हुए इक्तिरां देर तक
देखते ही रहे हम धुआं देर तक


कर भले तू पजीरइयां देर तक

पर टिकेंगी न रानाइयाँ देर तक


जब कहा उसने "तुम थे कहाँ देर तक"
मेरी ज़द में था बागे जिनां देर तक

ज़हन में थी तेरी दास्तां देर तक
मैं भिगोता रहा आस्तां देर तक

थी न साथ अपनी परछाइयाँ देर तक
ऐसे पसरी थीं तन्हाईयाँ देर तक


तेरी  महफ़िल की रंगीनियाँ देखकर
था खड़ा मैं लिए अर्मुगां देर तक


ज़िंदगी का बड़ा बोझ काँधे पे है
रख न पायेंगे तीरो कमां देर तक

आंधियों बिजलियों से न डर तू बशर 
टिक न पायेंगी ये बदगुमां देर तक

मुन्तज़िर एहतरामे बहाराँ हैं हम
कब रहा है ये दौरे खिजाँ देर तक

जान पाया न अफ्सुर्दगी का सबब
सोचकर था फलाँ या फलाँ देर तक

एक शमसीर क्या हाँथ में आ गयी
ले के बैठे रहे वो फसां देर तक

रंज़ो ग़म तो बयाँ हम नहीं कर सके
लडखडाती रही थी जुबां देर तक

आज ज़न्नत का मुझको नज़ारा दिखा
मेरे पहलू में था दिलसिताँ देर तक

मैं बस अखलाक़ अपने निभाता रहा
था मुखातिब वो नामेहरबां देर तक

मेरे अश्कों ने मुझसे किनारा किया
और जलते रहे जिस्मो जां देर तक

शब सहर तक ही रहती है क्यूँ आखिरश
की चिरागों ने सरगोशियाँ देर तक

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