बादलों ने यूँ शरारत चाँद से की रात भर
चांदनी फिरती रही ओढ़े उदासी रात भर
बर्फ मिलकर लाश से रोती रही थी रात भर
पर तसव्वुर में दिए के ज़िंदगी थी रात भर
आँखों में आंसू लिए वो मुस्करा कर चल दिए
और सुलझाते रहे हम ये पहेली रात भर
वक़्त की आंधी से मैं तो यूँ कभी हारा नहीं
ख्वाब गर्द आलूद देते हैं दिखाई रात भर
प्यार करता है हमें वो जाते जाते कह गया
और कानो में बजी इक धुन सुरीली रात भर
कैसे मुबहम नक्श हैं ज़हने मुसव्विर में बने
वो बनाता रह गया तस्वीर तेरी रात भर
खाब मेरे जब पहुचने को हुए अंजाम तक
बारहा टूटी निगोड़ी नीद मेरी रात भर
आखिरी दिन था जो गुजरा मान कर इसको ही सच
आज मैं लिखता रहा अपनी कहानी रात भर
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