Saturday, April 20, 2013

बादलों ने यूँ शरारत चाँद से की रात भर


बादलों ने यूँ शरारत चाँद से की रात भर 
चांदनी फिरती रही ओढ़े उदासी रात भर 

बर्फ मिलकर लाश से रोती रही थी रात भर 
पर तसव्वुर में दिए के ज़िंदगी थी रात भर 

आँखों में आंसू लिए वो मुस्करा कर चल दिए 
और सुलझाते रहे हम ये पहेली रात भर 

वक़्त की आंधी से मैं तो यूँ कभी हारा नहीं 
ख्वाब गर्द आलूद देते हैं दिखाई रात भर 

प्यार करता है हमें वो जाते जाते कह गया 
और कानो में बजी इक धुन सुरीली रात भर 

कैसे मुबहम नक्श हैं ज़हने मुसव्विर में बने 
वो बनाता रह गया तस्वीर तेरी रात भर 

खाब मेरे जब पहुचने को हुए अंजाम तक 
बारहा टूटी निगोड़ी नीद मेरी रात भर 

आखिरी दिन था जो गुजरा मान कर इसको ही सच
आज मैं लिखता रहा अपनी कहानी रात भर   

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