देखता जा आसमां अब तूं मेरी परवाज़ को
याद रक्खेगा ज़माना मेरे इस आगाज़ को
वक़्त की सब गर्द मैंने अपने तन से झाड़ दी
सुर नए दूंगा मैं अपने हर पुराने साज़ को
दोस्तों और दुश्मनों को खूब मैंने पढ़ लिया
ये पढेंगे अब हमारे मुखतलिफ़ अंदाज़ को
फ़र्ज़ मैं अपने निभा पाया न जाने किस तरह
भूल पाऊँगा खुदा कैसे तेरे एजाज़ को
मैं नज़रंदाज़ करता ही रहा हर ख़म तेरे
कौन पोशीदा रखेगा यूँ किसी के राज़ को
दिल धड़कने के सिवा अब और कुछ करता नहीं
सुन लिया है जब से इसने रूह की आवाज़ को
खलबली सी मच गयी है अब उकाबों में यहाँ
जब परिंदों ने बनाया दोस्त तीरंदाज़ को
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