Sunday, September 8, 2013

देखता जा आसमां अब तूं मेरी परवाज़ को

देखता जा आसमां अब तूं मेरी परवाज़ को 
याद रक्खेगा ज़माना मेरे इस आगाज़ को 

वक़्त की सब गर्द मैंने अपने तन से झाड़ दी 
सुर नए दूंगा मैं अपने हर पुराने साज़ को 

दोस्तों और दुश्मनों को खूब मैंने पढ़ लिया 
ये पढेंगे अब हमारे मुखतलिफ़ अंदाज़ को 

फ़र्ज़ मैं अपने निभा पाया न जाने किस तरह 
भूल पाऊँगा खुदा कैसे तेरे एजाज़ को

मैं नज़रंदाज़ करता ही रहा हर ख़म तेरे
कौन पोशीदा रखेगा यूँ किसी के राज़ को 

दिल धड़कने के सिवा अब और कुछ करता नहीं 
सुन लिया है जब से इसने रूह की आवाज़ को 

खलबली सी मच गयी है अब उकाबों में यहाँ 
जब परिंदों ने बनाया दोस्त तीरंदाज़ को

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