गला आबे समंदर से तो तर होता नहीं है
मगर आंसू पिए बिन भी बसर होता नहीं है
नहीं निभतीं हैं दुनियादारियाँ मुझसे खुदाया
हर इक के सामने नीचा ये सर होता नहीं है
समंदर बन के मैं कब तक रहूँ पलकें बिछाए
मुक़द्दर में सभी के तो क़मर होता नहीं है
यक़ीं करना हर इक के अश्क़ पर है नामुनासिब
निहां हर सीप में यकता गुहर होता नहीं है
खुदाई के लिए इंसानियत है शर्त पहली
बिना रस्ते के तो पूरा सफ़र होता नहीं है
मिली हैं जान देकर क़ब्र में नीदें सुकूं की
खुदा क़ुर्बानियों से बेखबर होता नहीं है
झलक दिख जाए तेरी तो मना लूं ज़श्न कुछ दिन
हर इक दिन ईद का चाँद अर्श पर होता नहीं है
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