Friday, September 6, 2013

गला आबे समंदर से तो तर होता नहीं है

गला आबे समंदर से तो तर होता नहीं है 
मगर आंसू पिए बिन भी बसर होता नहीं है 

नहीं निभतीं हैं दुनियादारियाँ मुझसे खुदाया 
हर इक के सामने नीचा ये सर होता नहीं है 

समंदर बन के मैं कब तक रहूँ पलकें बिछाए 
मुक़द्दर में सभी के तो क़मर होता नहीं है 

यक़ीं करना हर इक के अश्क़ पर है नामुनासिब
निहां हर सीप में यकता गुहर होता नहीं है

खुदाई के लिए इंसानियत है शर्त पहली 
बिना रस्ते के तो पूरा सफ़र होता नहीं है 

मिली हैं जान देकर क़ब्र में नीदें सुकूं की 
खुदा क़ुर्बानियों से बेखबर होता नहीं है 

झलक दिख जाए तेरी तो मना लूं ज़श्न कुछ दिन 
हर इक दिन ईद का चाँद अर्श पर होता नहीं है

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