हमारी बेबसी को देखकर जो मुस्कराता है
उसी को देखकर बरबस कलेजा मुह को आता है
अभी ज़िंदा हूँ मैं तू याद कर ले खामियां मेरी
असर हर बद्दुआ का जीते जी ही रंग लाता है
मैं अपनी बदनसीबी की शिकायत क्यूँ करूँ तुमसे
मुक़द्दर कब किसी मुफलिस के भी हिस्से में आता है
ज़हां रौशन है जिसके ताब से आखिर वो सूरज भी
बुरा हो वक़्त तो पानी में गिरकर टूट जाता है
रहेगा खुश भला कैसे बिछड़कर कोई अपनों से
फलक से टूटकर तारा कहाँ फिर टिमटिमाता है
मुक़द्दर के वरक़ पर गलतियाँ तुमसे हुई होंगी
तुम्हारे पास मेरा भी खुदाया एक खाता है
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