Tuesday, September 10, 2013

हमारी बेबसी को देखकर जो मुस्कराता है

हमारी बेबसी को देखकर जो मुस्कराता है
उसी को देखकर बरबस कलेजा मुह को आता है

अभी ज़िंदा हूँ मैं तू याद कर ले खामियां मेरी
असर हर बद्दुआ का जीते जी ही रंग लाता है

मैं अपनी बदनसीबी की शिकायत क्यूँ करूँ तुमसे
मुक़द्दर कब किसी मुफलिस के भी हिस्से में आता है

ज़हां रौशन है जिसके ताब से आखिर वो सूरज भी
बुरा हो वक़्त तो पानी में गिरकर टूट जाता है

रहेगा खुश भला कैसे बिछड़कर कोई अपनों से
फलक से टूटकर तारा कहाँ फिर टिमटिमाता है

मुक़द्दर के वरक़ पर गलतियाँ तुमसे हुई होंगी
तुम्हारे पास मेरा भी खुदाया एक खाता है



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