दिन है सारा सामने क्यूँ रात की बातें करें
सहन में आ बैठकर बरसात की बातें करें
तितलियों के पंख के सब रंग भर लें ज़ेहन में
फिर गुलों गुंचों के भी हालात की बातें करें
सोचता है क्या ज़मीं की यूँ तबाही देखकर
आसमां के मुख्तलिफ़ ज़ज़्बात की बातें करें
बिक रही है जब यहाँ इंसान की इंसानियत
टूटते तारों से क्यूँ खैरात की बातें करें
जिनकी शख्सीयत तसव्वुर में समा पाती नहीं
माह, समंदर, साहिलों ज़र्रात की बातें करें
मुह दिखाई में दिया क्या चाँदनी को चाँद ने
सुब्ह को शब् से मिली सौगात की बातें करें
जब लबों की थरथराहट पर हँसे थे अश्क़ भी
आज कुछ ऐसे हसीं लम्हात की बातें करें
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