Wednesday, June 26, 2013

रूह को दे के छाले गया

रूह को दे के छाले गया
फिर भी मुझसे दुआ ले गया

मैं तुम्हारी खुशी के लिए
दुश्मनी भी निभा ले गया

एक साया ही था हमनशीं
वो भी शब के हवाले गया

जांकनी में भी मुझसे कोई
ज़िन्दगी की दुआ ले गया

कैसे नाराज़ करता उसे
मेरे खूं की रिज़ा ले गया

क्यूँ सफीने को गिर्दाब में
आज ख़ुद नाखुदा ले गया

झाँक अपने गिरेबान में
जान ले, क्या मेरा ले गया

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