कभी जब वो तोलेगा खुद को नबी से
तब इंसान होगा सवा आदमी से
मकीं है मेरे दिल में आसेब कोई
जो हर आने वाला गया बेकली से
वही जानता है मज़ा ज़िन्दगी का
जिसे मौत आयी न हो खुदकुशी से
न हो जिसमे इम्काने आदाब हमको
गुजरते नहीं हम कभी उस गली से
मिलेंगे बिना मोल मज़हब के ठेके
अगर आग फैला सकें आप घी से
हक़ीक़त का था इसलिए जर्द चेहरा
मुखातिब थे सपने बड़ी बेरुखी से
नया इंक़लाब आएगा अब ज़हां में
मिलेंगे उजाले गले तीरगी से
ग़रज़ क्या की जाऊं मैं मंदिर ता मस्ज़िद
खुदा जब है खुश मेरी सादादिली से
तब इंसान होगा सवा आदमी से
मकीं है मेरे दिल में आसेब कोई
जो हर आने वाला गया बेकली से
वही जानता है मज़ा ज़िन्दगी का
जिसे मौत आयी न हो खुदकुशी से
न हो जिसमे इम्काने आदाब हमको
गुजरते नहीं हम कभी उस गली से
मिलेंगे बिना मोल मज़हब के ठेके
अगर आग फैला सकें आप घी से
हक़ीक़त का था इसलिए जर्द चेहरा
मुखातिब थे सपने बड़ी बेरुखी से
नया इंक़लाब आएगा अब ज़हां में
मिलेंगे उजाले गले तीरगी से
ग़रज़ क्या की जाऊं मैं मंदिर ता मस्ज़िद
खुदा जब है खुश मेरी सादादिली से
No comments:
Post a Comment