Monday, June 10, 2013

कभी जब वो तोलेगा खुद को नबी से

कभी जब वो तोलेगा खुद को नबी से
तब इंसान होगा सवा आदमी से

मकीं है मेरे दिल में आसेब कोई
जो हर आने वाला गया बेकली से

वही जानता है मज़ा ज़िन्दगी का
जिसे मौत आयी न हो खुदकुशी से

न हो जिसमे इम्काने आदाब हमको
गुजरते नहीं हम कभी उस गली से

मिलेंगे बिना मोल मज़हब के ठेके
अगर आग फैला सकें आप घी से

हक़ीक़त का था इसलिए जर्द चेहरा
मुखातिब थे सपने बड़ी बेरुखी से

नया इंक़लाब आएगा अब ज़हां में
मिलेंगे उजाले गले तीरगी से

ग़रज़ क्या की जाऊं मैं मंदिर ता मस्ज़िद
खुदा जब है खुश मेरी सादादिली से

No comments:

Post a Comment