बुज़ुर्गों की जिन्हें हक़ बात भी अच्छी नहीं लगती
उन्हें ताउम्र अपनी ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
दिखा मत ज़ोर अपना अब्र तू नाशाद सूरजको
किसी भी दिलजले को दिल्लगी अच्छी नहीं लगती
खिला रहता नहीं क्यूँ चाँद यकसाँ जैसे पूनम का
हसीं चेहरों पे फीकी से हँसी अच्छी नहीं लगती
जिसे जो रास आये, रास्ता कर ले इबादत का
अक़ीदत पर कभी छीटाकशी अच्छी नहीं लगती
फ़रीक़े ज़िन्दगी को ज़िंदगी से क्या गिला शिकवा
शरीके हाल से नाराज़गी अच्छी नहीं लगती
दिखे जब अब्र अफसुर्दा तो सूरज भी हुआ बेदिल
हो दुश्मन ग़मज़दा तो दुश्मनी अच्छी नहीं लगती
हिसारे ज़िस्म से आज़ाद हो ऐ रूहे पाकीज़ा
पुराने पैरहन से दोस्ती अच्छी नहीं लगती
उन्हें ताउम्र अपनी ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
दिखा मत ज़ोर अपना अब्र तू नाशाद सूरजको
किसी भी दिलजले को दिल्लगी अच्छी नहीं लगती
खिला रहता नहीं क्यूँ चाँद यकसाँ जैसे पूनम का
हसीं चेहरों पे फीकी से हँसी अच्छी नहीं लगती
जिसे जो रास आये, रास्ता कर ले इबादत का
अक़ीदत पर कभी छीटाकशी अच्छी नहीं लगती
फ़रीक़े ज़िन्दगी को ज़िंदगी से क्या गिला शिकवा
शरीके हाल से नाराज़गी अच्छी नहीं लगती
दिखे जब अब्र अफसुर्दा तो सूरज भी हुआ बेदिल
हो दुश्मन ग़मज़दा तो दुश्मनी अच्छी नहीं लगती
हिसारे ज़िस्म से आज़ाद हो ऐ रूहे पाकीज़ा
पुराने पैरहन से दोस्ती अच्छी नहीं लगती
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