Monday, March 25, 2013

सूरज उगा है लेकर ऐसी छटा गुलाबी


सूरज उगा है लेकर ऐसी छटा गुलाबी
दुनिया के सर पे जैसे सेहरा सजा गुलाबी

कर दे मेरे मसीहा कोई कमाल ऐसा 
इठला के बोले हर शै इक जाम ला गुलाबी

टकरायेंगे परिंदे सर आज आसमां से
है इस कदर फजां पर नश्शा चढ़ा गुलाबी

बचना कि हो न जाए तक़सीर कोई मुझसे
चेहरा हर एक मुझको दिखने लगा गुलाबी

मिल जाए आज मौक़ा तो मैं गले लगा लूं
मुझसे लिपट के होता है देवरा गुलाबी

तख्मीस हो न जाए हर शेर इस ग़ज़ल का
होली के रंग में हर मिसरा हुआ गुलाबी

सच है ये मैं दियानतदारी से कह रहा हूँ
ज़ह्राब लब का मंज़र दिखने लगा गुलाबी 

हालाते जाँकनी में लेटे बुज़ुर्ग की भी
यादों में हंस रहा है इक हादसा गुलाबी


जिस रंग में भी चाहे मुझको तू रंग देना
“केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी”

पूछा जो दोस्तों से क्या रंग भंग का है
इक घूँट पी के बोले "अब हो गया गुलाबी"

हो रंग कोई सबकी अपनी कशिश है लेकिन
मखसूस कुछ है इसमें जो है जुदा गुलाबी

ऐजाब हो रहा है हर इक हसीं को खुद पर
यूँ लडखडा रहे हैं मर्दाज़्मा गुलाबी 

माइल ब औज है अब, नश्शा ये भंग का है
दिखने लगेगी सब को सारी फ़ज़ा गुलाबी

बदख्वाह है परीशां दे कैसे बद्दुआयें 
जब बद्दुआ भी निकले बनकर दुआ गुलाबी

दौराने रंगपाशी पूछा जो उनकी च्वाइस (ख्वाहिश)
नज़रें मिला के बोले वो बरमला "गुलाबी"   


तक़सीर  - अपराध
तख्मीस  - शेर के दो मिसरों में तीन और मिसरे जोड़ कर पांच कर देना          
हालाते जाँकनी - प्राण निकलने की अवस्था
ऐजाब - घमंड
मर्दाज़्मा- योद्धा, महारथी
माइल ब औज -   धीरे धीरे ऊपर की ओर चढ़ने वाला
बरमला - खुल्लम खुल्ला



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