Friday, March 22, 2013

ज़िन्दगी क्या अज़ाब से कम है

मेरा ओहदा जनाब से कम है
रो'ब उनके रुआब से कम है  

मौत के बाद की खुदा जाने
ज़िन्दगी क्या अज़ाब से कम है

अश्के ग़म में भी है खुमारी सी
क्या जो नश्शा शराब से कम है

देखता है मगर हक़ारत से
बेदिली किस जवाब से कम है

मुस्कराता है ज़ुल्म करके जो  
क्या वो नेता कसाब से कम है

ख़्वाब में पेट भर के खा लेना
क्या किसी इंक़लाब से कम है

ग़मगुसारी में छोड़ दीं खुशियाँ 
ये भी क्या इन्तिखाब से कम है

जान ले ले जो अश्क़े तनहाई
क्या किसी ज़ह्रे आब से कम है

हर वरक़ पर लिखे हैं अफ़साने
ज़िंदगी किस किताब से कम है

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