Friday, March 15, 2013

मसर्रत के आंसू छुपाना है मुश्किल

किसी रूह का अक्स पाना है मुश्किल 
ये फ़न आईने को सिखाना है मुश्किल 

छुपा लो भले ग़म के आंसू जहां से
मसर्रत के आंसू छुपाना है मुश्किल 


है आसां बहुत इश्क में फतह पाना 
मगर रश्के राक़िब कमाना है मुश्किल 

फज़ीलत की है भूख हर आदमी को 
मशीयत बिना इसको पाना है मुश्किल  

बुझा बारहा जा के मग्रिब में सूरज
मगर हसरतों को बताना है मुश्किल 

जो हैं बे'तअस्सुब अमल से लबालब 
उन्हें ज़ातो मज़हब सिखाना है मुश्किल 

वो दाराए खल्क़ आज़माता है सबको  
हर इक का मगर पार पाना है मुश्किल 

इसी बात से तू परीशां है शायद
कि मुश्किल को आसां बनाना है मुश्किल 

कसीरुस्समर है खुदा की मुहब्बत  
इसे संगदिल में उगाना है मुश्किल  

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