तू अगर बेहौसला होता नहीं
देख कर हमदर्द को रोता नहीं
फिक्र होती है नए दिन की उसे
चैन से सूरज कभी सोता नहीं
साथ सदियों से समंदर है मगर
साहिलों में ज़िंदगी बोता नहीं
ख्वाब में बेदाग़ देखा है उसे
यूँ ही दरिया चाँद को धोता नहीं
दूरियाँ कितनी भी तै कर ले मगर
रास्ता मंजिल कभी होता नहीं
हम अगर मुंसिफ की नीयत जानते
तो मुखालिफ फैसला होता नहीं
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