कुछ सहमे कुछ गूंगे
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
अभिलाषाओं की चादर से
मुह ढक कर मैं रोता हूँ
आज लेखनी थकी हुई
कुछ कहने को आतुर भी है
मेरे मन में
सधे, सहेजे भावों का अंकुर भी है
मैं फटही चादर के नीचे
सिंह द्वार पर सोता हूँ
कुछ सहमे कुछ गूंगे
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
मेरे शब्दों को पढ़कर
कुछ रोते, कुछ मुस्काते हैं
कुछ अपनी अंधी, उदास
मानवता को उकसाते हैं
मैं निराश-जन के मन में
आशा के अंकुर बोता हूँ
कुछ सहमे कुछ गूंगे
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
मुझको लूटा राजाओं ने
पूजा चन्द फकीरों ने
आजादी मुझको दी है
कुछ वीरों की शमशीरों ने
उनके अहसानों का बोझ उठाता हूँ,
खुश होता हूँ
कुछ सहमे कुछ गूंगे
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
अभिलाषाओं की चादर से
मुह ढक कर मैं रोता हूँ
आज लेखनी थकी हुई
कुछ कहने को आतुर भी है
मेरे मन में
सधे, सहेजे भावों का अंकुर भी है
मैं फटही चादर के नीचे
सिंह द्वार पर सोता हूँ
कुछ सहमे कुछ गूंगे
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
मेरे शब्दों को पढ़कर
कुछ रोते, कुछ मुस्काते हैं
कुछ अपनी अंधी, उदास
मानवता को उकसाते हैं
मैं निराश-जन के मन में
आशा के अंकुर बोता हूँ
कुछ सहमे कुछ गूंगे
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
मुझको लूटा राजाओं ने
पूजा चन्द फकीरों ने
आजादी मुझको दी है
कुछ वीरों की शमशीरों ने
उनके अहसानों का बोझ उठाता हूँ,
खुश होता हूँ
कुछ सहमे कुछ गूंगे
शब्दों में एहसास पिरोता हूँ
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