तुम्हारी ज़ुल्फ़ चेहरे पर बिखर जाती तो क्या होता
हसीं मुस्कान पर बिजली सिहर जाती तो क्या होता
तुहारी नाक के मोती से छिटकी इक किरन कोई
किसीके दिल से होकर जो गुजर जाती तो क्या होता
तुम्हारे रूप पर होकर फ़िदा ठहरी तुम्हारी वय
कहीं कुछ साल पहले ही ठहर जाती तो क्या होता
चढी जो जिस्म के जीने से शीतल चांदनी तुम पर
तुम्हारे नूर पर वो आह भर जाती तो क्या होता
तुहारे सुर्खरू कोमल कपोलों से हिना लेकर
उषा अपना अगर श्रृंगार कर जाती तो क्या होता
तुहारी याद में जो जी रहा है, जेह्न से उसके
मुहब्बत की खुमारी जो उतर जाती तो क्या होता
हसीं मुस्कान पर बिजली सिहर जाती तो क्या होता
तुहारी नाक के मोती से छिटकी इक किरन कोई
किसीके दिल से होकर जो गुजर जाती तो क्या होता
तुम्हारे रूप पर होकर फ़िदा ठहरी तुम्हारी वय
कहीं कुछ साल पहले ही ठहर जाती तो क्या होता
चढी जो जिस्म के जीने से शीतल चांदनी तुम पर
तुम्हारे नूर पर वो आह भर जाती तो क्या होता
तुहारे सुर्खरू कोमल कपोलों से हिना लेकर
उषा अपना अगर श्रृंगार कर जाती तो क्या होता
तुहारी याद में जो जी रहा है, जेह्न से उसके
मुहब्बत की खुमारी जो उतर जाती तो क्या होता
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