Tuesday, November 6, 2012

तुम्हारी ज़ुल्फ़ चेहरे पर बिखर जाती तो क्या होता

तुम्हारी  ज़ुल्फ़ चेहरे पर बिखर जाती तो क्या होता
हसीं  मुस्कान पर बिजली सिहर जाती तो क्या होता

तुहारी नाक के मोती से छिटकी इक किरन कोई
किसीके दिल से होकर जो गुजर जाती तो क्या होता

तुम्हारे रूप पर होकर फ़िदा ठहरी तुम्हारी वय
कहीं  कुछ साल पहले ही ठहर जाती तो क्या होता

चढी जो जिस्म के जीने से शीतल चांदनी तुम पर
तुम्हारे  नूर पर वो आह भर जाती तो क्या होता

तुहारे सुर्खरू कोमल कपोलों से हिना लेकर
उषा अपना अगर श्रृंगार कर जाती तो क्या होता

तुहारी याद में जो जी रहा है, जेह्न से उसके
मुहब्बत की खुमारी जो उतर जाती तो क्या होता

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