खुदी को कर दिया खुद से जुदा क्या
खुद अपने आप से तू है खफा क्या
निखरती जा रही है बदनसीबी
इसे लगती नहीं है बद्दुआ क्या
खुदा तू सुन लिया करता था मन की
सदायें सुन के बहरा हो गया क्या
चले जिस राह पर शेखो बिरहमन
जहन्नुम का वही है रास्ता क्या
जमाने की बहुत है फ़िक्र तुझ को
तू अपने आप से उकता गया क्या
बहुत मायूस लगता है मुसाफिर
नहीं है याद मंजिल का पता क्या
कफस में लौट क्यूँ आया परिंदा
फिजाँ में बाज़ का चर्चा हुआ क्या
जिन्हें मुफलिस कहा करती है दुनिया
निहाँ उनमे ही रहता है खुदा क्या
सिहर जाते हैं जिसको देख कर सब
उसी को देख कर बच्चा हंसा क्या
खफा क्यूँ हैं मेरे अहबाब मुझसे
पता मेरी ख़ुशी का चल गया क्या
No comments:
Post a Comment