Thursday, September 6, 2012

खुदी को कर दिया खुद से जुदा क्या

खुदी को कर दिया खुद से जुदा क्या
खुद अपने आप से तू है खफा क्या

 निखरती जा रही है बदनसीबी
इसे लगती नहीं है बद्दुआ क्या

खुदा तू सुन लिया करता था मन की
सदायें सुन के बहरा हो गया क्या 
चले जिस राह पर शेखो बिरहमन
जहन्नुम का वही है रास्ता क्या
जमाने की बहुत है फ़िक्र तुझ को
तू अपने आप से उकता गया क्या

बहुत मायूस लगता है मुसाफिर
 नहीं है याद मंजिल का पता क्या

कफस में लौट क्यूँ आया परिंदा
फिजाँ में बाज़ का चर्चा हुआ क्या
जिन्हें मुफलिस कहा करती है दुनिया
निहाँ उनमे ही रहता है खुदा क्या

सिहर जाते हैं जिसको देख कर सब 
उसी को देख कर बच्चा हंसा क्या 
खफा क्यूँ हैं मेरे अहबाब मुझसे
पता मेरी ख़ुशी का चल गया क्या


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