ये ज़मीं जब खून से तर हो गयी है
ज़िंदगी कहते हैं बेहतर हो गयी है
हाँथ पर मत खींच बेमतलब लकीरें
ज़िस्म की रग रग सियहतर हो गयी है
बादलों ने बारहम मरहम उडेला
अब ज़मीं की भी जबीं तर हो गयी है
लोग अंतरजाल से ऐसे जुड़े हैं
हालते अख्लाक़ बदतर हो गयी है
ज़िंदगी का हाल जब पूछा किसी ने
पुरनमी आँखों की उत्तर हो गयी है
कोई आये, अब तो ये ज़म्हूरियत भी
जैसे इक वेश्या का बिस्तर हो गयी है
बेअसर बेशर्म नेताओं की गर्दन
वक़्त पर कछुए सी भीतर हो गयी है
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