Tuesday, July 3, 2012

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

पंख होते पास तो उड़कर पहुंचता
प्यार से आशीष देता और कहता
पाँव मेरे अब लरजते हैं तो कैसे
गोंद में लेकर तुम्हे झूला झुलाऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

श्वांस का क्रंदन भला कैसे सुनूं मैं
जो सिखाया है तुम्हे, कैसे गुनूं मैं
सिसकियाँ अपनी नहीं सुन पा रहा हूँ
फिर भला कैसे तुम्हे मैं चुप कराऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

मैं जमाने कि निगाहों से बचाकर
चाहता हूँ देखना तुमको शिखर पर
तुम अगर खुद को न पहचानो तो कैसे
मैं जमाने से भला परिचय कराऊँ

चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

वो मुझे ही देख इठलाना तुम्हारा
रूठ कर हर बात मनवाना तुम्हारा
जी लिया हर पल तुम्हारे साथ जीवन
दुःख नही, जो मौत से अब हार जाऊं


चाहता तो हूँ तुम्हे लोरी सुनाऊँ
थपकियाँ दे गोंद में तुमको सुलाऊँ

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