Sunday, July 15, 2012

और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं

आज फिर अंतःकरण से रार कर लूं
और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं

शब्द जिह्वा पर किये हैं मौन धारण
दे सहज वाणी उन्हें साकार कर लूं

और थोड़ी देर तक ठहरो बटोही
जो तुम्हे भाये वही श्रृंगार कर लूं

हर परिस्थिति में रहा मैं सत्य पथ पर
इस अपाहिज झूंठ का प्रतिकार कर लूं

मत परोसो अब मुझे सपने सलोने
मैं किसी से तो उचित व्यवहार कर लूं

सोचता हूँ, और सह सकता नही तो
आख़िरी आगोश को स्वीकार कर लूं

सच हताशा में स्वयम से कह रहा है
झूठ का मैं भी न क्यूँ व्यापार कर लूं

कुछ सुलगते कुछ सिसकते शब्द पीकर
मौन को मैं क्यूँ न अंगीकार कर लूं

सृष्टि की परिकल्पना में है सुनिश्चित
अंत के आरम्भ का आधार कर लूं


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