Sunday, February 5, 2012

रुला रुला के जो मार डाले उसी के हाँथों निजाम साहिब
मिलेगा मौका तो हम भी लेंगे शदीद सा इंतकाम साहिब

हुआ नही है कभी जहाँ पर शरीफ़ का एहतिराम साहिब
तो भूल कर भी किया नही है वहाँ पे मैंने कयाम साहिब

सहा जो बेहुर्मती, बुलाते थे प्यार से मुझको महफ़िलों में
हुआ मुझे इल्म तो नही है कोई भी उनका पयाम साहिब

मुगालते में है एक बच्चा करेगा वो सब की रहनुमाई
थमा दिया है शराबियों ने उसी के हाँथों में जाम साहिब

वो जिसकी जुल्फों की भीनी खुशबू कई को पागल बना चुकी है 
उसी कि खातिर किये पड़े हो तुम अपनी नीदें हराम साहिब

पचा हज़ारों करोड़ जिनको लगी नही थी तनिक भी गर्मी
लगी जो इन्साफ की हवा तो हुआ है उनको ज़ुकाम साहिब

नहीं पता था उन्हें कि नादां कि दोस्ती बस जलन है जी की 
सम्हल भी पाते के कब्ल उसके उजड चुके थे इमाम साहिब

बहुत ही खुदगर्ज़ है ज़माना संभल के चलना बचा बचा कर 
तुम्हे पता भी नही चलेगा किया क्यूँ तुमको सलाम साहिब

जो मजहबी चाशनी में इंसानियत डुबो कर सटक रहे हैं
खुदा करे अब चुकायें वो भी कोई तो माकूल दाम साहिब

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