Monday, February 6, 2012

लदे थे पत्ते
डाली हुई ठूंठ सी
नये की आस

शक्तिमान हो
खिला सकते हो क्या?
एक भी फूल


भौरे की गूँज
आ गया मधुमास
गुनगुनाता


सरसो फूली
पीली हुई हो जैसे
रम्भा के वस्त्र

प्रकृति चक्र
पूर्ण करने को है
व्यग्र मदन




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