Sunday, January 1, 2012

कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में
पीढ़ियों की ये निशानी हैं अभी तक गाँव में

वक़्त रोने और हँसने का हमें मिलता नहीं 
छोरियाँ कजरी सुनाती हैं अभी तक गाँव में 

शादियों के जश्न में जेवनार पर समधी हँसे
गालियाँ लगती सुहानी हैं अभी तक गाँव में

बेटियों सा प्यार बहुएँ पा रहीं शायद तभी
सास के वो पाँव धोती हैं अभी तक गाँव में

आपसी रिश्तों में तल्खी आ नही पाती यहाँ
छोहरी, बायन औ सिन्नी  हैं अभी तक गाँव में

हैं हठीले आज भी गावों में सच्ची सोच के  

बातें सच्ची हैं तो सच्ची हैं अभी तक गाँव में 


छोहरी - रबी की फसल घर में आने पर सबसे पहले सत्तू बनाकर गाँव भर के छोरों छोरियों को खिलाया जाता है 
बायन - शादी या गौने की बिदाई में बहू के साथ आये लड्डू आदि मिठाइयों को गाँव भर में बांटा जाता है 
सिन्नी - गन्ने से खांड और गुड बनाने पर पहले पाग से बच्चों को खिलाया जाता है 

No comments:

Post a Comment