Wednesday, December 28, 2011

कोंख में कविता


कोंख में कविता


आज पूरी रात
सो नही पायी मैं 
सुखाती रही 
गीले शब्दों को 
गर्म साँसों की आँच पर
आंसुओं ने
कर दिया था विद्रोह
गिरते रहे टप टप टप 
भावों की भट्ठी पर 
बुझाते रहे सुलगते विचारों को
और मैं लिख न सकी
कुछ भी
अपनी सृजन शीलता पर आश्वस्त 
मैं दांत भींचे सहती रही 
अजन्मी कविता की प्रसव-वेदना
नहीं हुआ कोई असर
बादलों से मिले प्रोत्साहन का भी
खूब बढ़ाया मनोबल
पर स्वयं ही बरस गये
और 
हो गए पानी पानी
मुझे विशवास है
जन्म लेगी एक दिन
एक सुन्दर, सलोनी कविता
मेरी कोंख से
और भर जायेगी
मेरी सूनी गोंद

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