Thursday, July 28, 2011

ढाई आखर


हमें भी ढाई आखर का अगर संज्ञान हो जाए  
वही गीता भी हो जाए वही कुरआन हो जाए

मजाज़ी औ हक़ीक़ी का अगर मीज़ान हो जाए
मेरा इज़हार यारों मीर का दीवान हो जाए

जला कर ख़ाक करना, कब्ल उसके ये दुआ देना
कि मेरा जिस्म सारा खुद ब खुद लोबान हो जाए

खुदा को भूलने वालों तुम्हारा हस्र क्या होगा
खुदा तुमसे अगर मुह मोड ले, अनजान हो जाए

मजारें चादरों से ढक गयीं पर खल्क नंगी है
हमारे रहनुमाओं वाइजों को ज्ञान हो जाए

सभी घर मंदिर-ओ-मस्जिद में खुद तब्दील हो जाएँ
अगर इंसानियत इंसान की पहचान हो जाए

मेरे हाँथों से भी नेकी भरा कुछ काम करवा दे
जहां छोडूं तो हर नेकी मेरी उन्ह्वान हो जाए


हमें अब आस्तीनों में भी अपने झांकना होगा  
छुपे हैं साँप जो उनकी हमें पहचान हो जाए 


तेरे भाई ही बन बैठे हों गर दुश्मन तो ऐ अर्जुन 
उठा गांडीव फिर से आज सर संधान हो जाए 

परिंदे मगरिबी आबो हवा के शेष शैदा हैं  
कहीं ऐसा न हो अपना चमन वीरान हो जाए

Wednesday, July 27, 2011

अवधी घनाक्षरी

कजिया सबेरे वाली संझिया क बरसात 
बड़ा दुःख दे थ भैया ए से रह बचि के 
देवरानी औ जेठानी झगडा कर थीं ए पे 
हमरे के थोर थोर अपने के गचि के 
बड़ी बड़ी बतिया त लोगवा बिसारि दे थ
छोट छोट बतिया पे लड़ थ हुमचि के 
अइसईं घरवा क होई जा थ सत्यानास 
रह प्रेम से औ जीय जिनगी खमचि के 

के के बदे बनवत हउ भौजी टिल्ला बुल्ला 
डाकटर भैया अब लौटि के न अइहें  
ओनके त दिल्ली वाली बिल्ली पालि लिहे बाटै
अब त तोहइ छोड़ि उही संग राहिहें
बाबू माई खटि खटि ओनके पढ़ाई दीहें
ओनहू क अहसान लग ता भूलइहें
काहे भूलि जा थ लोग घर परिवरवा के
परे जौ बिपति कौनौ एही काम अइहें







Sunday, July 24, 2011

मुझको अँधेरा दे दिया

रोशनी के नाम पर मुझको अँधेरा दे दिया
खो गयी पहचान मेरी वो सबेरा दे दिया

कौल में था आशियाँ उसने निभाया ही नहीं
दर बदर करके मेरी किस्मत को फेरा दे दिया

हम जहां आबाद हैं वो है निशानी बाप की
वो समझता है हमें साँपों का डेरा दे दिया

तूने मेरी आँख में बेसाख्ता आंसू दिए
मैंने भी आँखों में तेरी अक्स तेरा दे दिया

देख तू अपने को अपनी ही नज़र से सुब्हो शाम
ठोंक ले तूं पीठ अपनी, हाँथ मेंरा दे दिया

शेष धर तिवारी

Thursday, July 14, 2011

ज़िंदगी के चार दिन

ज़िंदगी के चार दिन
हैं बहुत बीमार दिन


जब नहीं अपना कोई
हैं सभी बेकार दिन


साथ हों बच्चे अगर
लो मना रविवार दिन


जब जिया जलता रहे
तो बनें अंगार दिन


देख कर तेरी खुशी
ले लिए आकार दिन


आख़िरी घड़ियों में अब
है हमी पर भार दिन


जो बिताये साथ में 
थे बहुत गुलजार दिन 


हों खुदा की रहमतें
तो कहाँ दुश्वार दिन

Friday, July 8, 2011

समंदर को आज मुझको कर दिखाना है

समंदर को आज मुझको कर दिखाना है
सफीना हर हाल में मुझको बचाना है


समझते हैं चाँद अपने को तो वो समझें
हमें बस उनके भरम पर मुस्कराना है


उठाये तूफ़ान कोई आग बरसाए
हमें तो अब हर किसी को आजमाना है


समंदर जो जज्ब है अंदर मेरे अब तक
कभी तो आखिर मुझे उसको बहाना है


मुझे अब आईना भी करता नहीं बर्दाश्त
नहीं बेबस अब मुझे यूँ छटपटाना है

Wednesday, July 6, 2011

यूँ तो मैं हँसता रहा सबसे गले मिलता रहा




यूँ तो मैं हँसता रहा सबसे गले मिलता रहा
पर हकीकत को मेरा चेहरा बयां करता रहा

लाख कर लीं कोशिशें मंजिल नहीं मिलती मुझे
दूसरों के वास्ते मैं रास्ता बनता रहा

मैं रहा ग़मगीन वो भी चुप रहा गम में मेरे
खामुशी ही खामुशी थी रास्ता कटता रहा

मिल गया हमदर्द कोई अश्क थे जो कैदे चश्म
कर के मैं आज़ाद उनको हाले दिल कहता रहा

जो तेरे अपने हैं उनके वास्ते रो कर तो देख
रात मैं रो कर मजे से दर्दे दिल सहता रहा