Saturday, September 24, 2011


दिलो जां लुटाने के दिन आ रहे हैं
कि वादे निभाने के दिन आ रहे हैं

सुना है यहाँ आशियाने बनेंगे
लो झोपड़ ढहाने के दिन आ रहे हैं

हुई उम्र सत्तर औ ऊपर से सर्दी
तो चलने चलाने के दिन आ रहे हैं

सुना है कि आने को है फिर एलेक्शन
कि फिर उनके आने के दिन आ रहे हैं

खुशी में रहे साथ जो, अब ग़मों में
उन्हें आजमाने के दिन आ रहे हैं

है छप्पर फटा और बारिश का मौसम
मेरे फटफटाने के दिन आ रहे हैं

परिंदों में फिर हो रही आशनाई
कि खोथे बनाने के दिन आ रहे हैं

No comments:

Post a Comment