Monday, September 26, 2011

समंदर ने जब भी किनारा किया

समंदर ने जब भी किनारा किया
नुमू हो क़मर ने इशारा किया.........नुमूं - प्रकाशित, क़मर - चाँद

मेरे साथ साहिल भी रोता रहा
समंदर को यूँ हमने खारा किया

भले बाप कदमो में कर ले जहां
पर औलाद से खुद की हारा किया

पता था हमें वो न आएगा अब
न जाने ये दिल क्यूँ पुकारा किया

कहाँ ढूंढते दश्त में आशियाँ
शज़र को ही अपना सहारा किया

दुआओं की तासीर मत पूछिए
इन्ही के सहारे गुजारा किया

रगे अब्र तक़दीर लिखने को थी .......... रगे अब्र - बादलों के बीच की लकीर
मुक़द्दर ने उल्टा इशारा किया

जहां में नहीं कोई साथी मिला
तो दुश्मन ही मैंने गवारा किया

खुदा तू बुढापा बनाता है क्यूँ
कि बेटों ने ही बेसहारा किया

जो कुफ्फ़ार की महफ़िलें थीं उन्हें
तहीयत का हमने इदारा किया

1 comment:

  1. बहुत खूब ... शेष धर जी लाजवाब गज़ल है ये ... हर शेर कमाल का ...

    ReplyDelete