Saturday, March 5, 2011

होली

लो आयी फिर होली ले कर रंगों की बौछार जोगीरा स र र र 
बुधुवा भी नाचेगा खा कर रोटी और अचार जोगीरा स र र र 

उसका छोटा बेटा मांगे पिचकारी का पैसा लेकिन दे कैसे 
उसकी महतारी को भी खुश करना है इस बार जोगीरा स र र र

बुढऊ दद्दा को आती है याद सभी पिछली होली, अपनी उसकी 
कैसे हो जाते थे उनके कपडे तारमतार जोगीरा स र र र

जीजाजी ऐंठे बैठे हैं साली से कुछ मनमुटाव सा लगता है 
मन की मन में रह जायेगी लगता है इस बार जोगीरा स र र र 

हम तो खुश है छुट्टी होगी तीन दिनन की जम के भंग छनेगी फिर 
ऐसा मौका मिल जाए तो कैसा सोच बिचार जोगीरा स र र र


गीली गीली रंग सनी जब निकले गोरी घर से अपने, होरी को 
मन पर दबी हुई इच्छाओं का होता अधिकार जोगीरा स र र र 

देवर तकता भौजाई की गीली सारी से चिपकी गीली अंगिया 
सोचे मन ही मन कब होगा उसका बेड़ा पार जोगीरा स र र र 

कोई हमको ताऊ कहता कोई अंकल चाचा, हम क्या बूढ़े हैं 
जांचे परखे बिन हम पर ये कैसा अत्याचार जोगीरा स र र र



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