निजी रिश्ते हमेशा चूक होने पर बिगड़ते हैं
घरों की इन दरारों में फनीले सांप पलते हैं
हमारे हो हमेशा ही हमारे तुम रहो, सुन लो
अना की जंग झुक क़े हारने को जीत कहते हैं
दरीचों को खुला रक्खो मिलेगी बाग़ की खुशबू
घमंडी लोग बातों को कहाँ जल्दी समझते हैं
दिखाया चाँद को हंसके जो इक दिन आइना तुमने
न समझा चाँद भी क्यूँ लोग उस पर रश्क करते हैं
हमारी रूह-जेहन में सदा चलती महाभारत
हमारा क्रोध दुर्योधन भरम को भीष्म कहते हैं
किसी को देखना हो गर तो आँखें मूँद कर देखो
की अक्सर लोग चेहरों पे भी चेहरे ओढ़ लेते हैं
कभी आँखों दिखी कानो सुनी से हट क़े भी सोचो
की बहरों नाबिनों की आँख से भी अश्क बहते हैं
चलो उन्ह बेमियादी मुश्किलों का दौर तो गुजरा
समझदारी दिखाई है तभी तो आज हँसते हैं
कभी तो दूसरों की जिंदगी को ज़िन्दगी समझो
जिया जो बेमुरव्वत सब उसे शैतान कहते हैं
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