Wednesday, January 26, 2011

जुगलबंदी

जो मुझको देख घूँघट आपने सरका दिया होता
तो मेरी हर वफ़ा क़े क़र्ज़ को चुकता किया होता

नहीं मरता है कोई भी किसी क़े रूठ जाने से
मुझीसे रूठ कर इस बात को झुठला दिया होता

लगे जब आग गुलशन में, पतंगे तब कहाँ रुकते
चले जाते मगर ये फलसफा समझा दिया होता

नहीं  हैं आप मेरे बात ये मैं मान लूं कैसे
भले गैरों में ही पर आपने चर्चा किया होता

तुम्हे भाती है रोने और हंसने की जुगलबंदी
हमें ये शौक अपना ऐ खुदा बतला दिया होता 

No comments:

Post a Comment