जो नहीं होता है ये सरकार जिम्मेदार है
पूज के पत्थर हमें इन्सां को खुश करना पड़े
संग से भी संगदिल इंसान को धिक्कार है
एक मुट्ठी रेत सी है हाथ सबके ज़िंदगी
फिर न जाने क्यूँ कहे हर एक वो सरदार है
जब तड़प कर बोलता सिन्दूर रुकने क़े लिए
चाह का दीदार से होता शुरू अभिसार है
सिसकियाँ लेकर कहे श्रृंगार जब दिल की ब्यथा
अनसुनी करना इसे इक असंभव आचार है
दर्द दिल का बढ़ चुका इतना सहन होता नहीं
धडकना इसका रुके ये भी मुझे स्वीकार है
बारहा आँखों को धोने से तो कुछ होगा नहीं
छुप गयी पर यूँ न रुकती आंसुओं की धार है
रात जब करवट बदलती दर्द से बेहाल हो
तब गुलों क़े बीच लेती मधुकली आकार है
फूल का शव देख कर इक सिहर जाती है कली
जिन्दगी बस मौत का चलता सा कारोबार है
विश्व की आलोचना का आप को अधिकार है
आज संगम के किनारे कडकडाती ठण्ड में
मुक्ति पा लेने को बूढी जान के बीमार हैपूज के पत्थर हमें इन्सां को खुश करना पड़े
संग से भी संगदिल इंसान को धिक्कार है
एक मुट्ठी रेत सी है हाथ सबके ज़िंदगी
फिर न जाने क्यूँ कहे हर एक वो सरदार है
जब तड़प कर बोलता सिन्दूर रुकने क़े लिए
चाह का दीदार से होता शुरू अभिसार है
सिसकियाँ लेकर कहे श्रृंगार जब दिल की ब्यथा
अनसुनी करना इसे इक असंभव आचार है
दर्द दिल का बढ़ चुका इतना सहन होता नहीं
धडकना इसका रुके ये भी मुझे स्वीकार है
बारहा आँखों को धोने से तो कुछ होगा नहीं
छुप गयी पर यूँ न रुकती आंसुओं की धार है
रात जब करवट बदलती दर्द से बेहाल हो
तब गुलों क़े बीच लेती मधुकली आकार है
फूल का शव देख कर इक सिहर जाती है कली
जिन्दगी बस मौत का चलता सा कारोबार है
एक दिन में तो मुकम्मल शायरी होती नहीं
"शेष" जैसे तालिबों का ये गुमां बेकार है
No comments:
Post a Comment