किसी तालाब में तो जज्रोमद आते नहीं देखा
कभी भी तंगदिल को जरफ़िशाँ होते नहीं देखा
दिखाई हैं पड़े इंसान की शक्लों में भी बहशी
किसी भी जानवर को आजतक हँसते नहीं देखा
गलत होते बहुत से फैसले मुंसिफ के भी लेकिन
कटघरे में तो मुंसिफ को खड़े होते नहीं देखा
सदा से पूर्वजो के पुण्य का फल भोगते हैं जो
उन्हें उन पूर्वजों के फ़र्ज़ को ढोते नहीं देखा
सियासत में लगा करते रहे हैं दाग दामन पे
इन्हें अच्छे करम करके कभी धोते नहीं देखा
सही जाती नहीं जब भूख बच्चों की, तभी बिकती
कि मुफलिस को खुशी से आबरू खोते नहीं देखा
जज्रोमद - ज्वार-भाटा
जरफ़िशाँ - दरियादिल, दानी
No comments:
Post a Comment