तुम्हारी बेहिसी से थक क़े मैं मुह मोड़ सकता हूँ
खुदा तुमसे कई जन्मो का रिश्ता तोड़ सकता हूँ
लहू मेरा अगर मेरे वतन क़े काम आ जाए
मैं सारा जिस्म अपना अपने हाँथ निचोड़ सकता हूँ
सुनाती थी कहानी एक नानी जो मुहब्बत की
सुना क़े मैं उसीको आज सब को जोड़ सकता हूँ
हकीकत जो हमें मालूम है रस्मे सियासत की
बयाँ कर दूँ अगर सारा निजाम झिझोड़ सकता हूँ
मेरे बच्चों को मेरे पास क़े लोगों से खतरा हो
तो मैं इंसान क्या सांपो क़े फन मरोड़ सकता हूँ
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