Wednesday, January 12, 2011

सांपो क़े फन मरोड़ सकता हूँ

तुम्हारी बेहिसी से थक क़े मैं मुह मोड़ सकता हूँ
खुदा तुमसे कई जन्मो का रिश्ता तोड़ सकता हूँ

लहू मेरा अगर मेरे वतन क़े काम आ जाए
मैं सारा जिस्म अपना अपने हाँथ निचोड़ सकता हूँ

सुनाती थी कहानी एक नानी जो मुहब्बत की
सुना क़े मैं उसीको आज सब को जोड़ सकता हूँ

हकीकत जो हमें मालूम है रस्मे सियासत की
बयाँ कर दूँ अगर सारा निजाम झिझोड़ सकता हूँ

मेरे बच्चों को मेरे पास क़े लोगों से खतरा हो
तो मैं इंसान क्या सांपो क़े फन मरोड़ सकता हूँ

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