Saturday, January 1, 2011

जनतंत्र

जनतंत्र
चौपाई : १६:१६

रहे गुलाम कई बरसों तक | उगा नहीं पाए सरसों तक
करते रहे नील की खेती | जो न पेट भर रोटी देती 
लड़ कर सत्य अहिंसा क़े बल | मुश्किल से आया था वो पल
जब ये देश स्वतंत्र हुआ था | अपना ये जनतंत्र हुआ था 
थे कुछ लोग संकुचित मन क़े | काट दिए टुकड़े निज तन क़े 
हुआ विभाजित देश हमारा | अपनों को अपनों ने मारा 
देश हमारा हमको प्यारा | अपनों से ही ये भी हारा 

कर्म नहीं गांधी सुभाष से | फटके भी न आस पास से
फिर भी हम सीना चौड़ा कर | देते भाषण सजे मंच पर
हों सिद्धांत और पर लागू | अपने बने रहें बड़ भागू
जय जन तंत्र-देश का अपने | कितने मधुर दिखाता सपने
देश हुआ आज़ाद कहें हम | वादों पर ही टिके रहें हम
सत्ता की ऐसी परिपाटी | आपस में ही मिलकर बांटी
जनता मूरख है भोली है | उसके हिस्से बस गोली है
यहाँ स्वयंभू राजा बनते | लोकतंत्र को ऐसे ठगते
वाद चले भाई भतीज का | मोल नहीं है किसी चीज का
आप अगर नेता बन जाएँ | अनपढ़ हों सिरमौर कहाएँ
अपराधी विधि-मंत्री बनते | शहर शहर में बंगले तानते
प्रजा-तंत्र में प्रजा दुखी है | घूसखोर औ चोर सुखी है
जनता क़े घर फांके पड़ते | गोदामों में बोरे सड़ते
जय जय जय परदेसी माई | तू क्या आयी शामत आयी
मनमोहन सब क़े मनमोहन | हँस क़े करवाते निज दोहन
जय युवराज तुम्हारे भाषण | कितना है तुझमे आकर्षण
तुमने नहीं बोलना सीखा | बोले जहाँ बालपन दीखा
तेरे चाटुकार मंत्रीगण | रंग बदलते हैं जो हर क्षण
उनको हे ईश्वर सन्मति दे | उनकी बुद्धि, समझ को गति दे
जय राजा जय जय कलमाडी | अपना चूल्हा अपनी हांडी
चूस लिया तुमने जनता को | मनमोहन की निस्फलता को
जय जय जय जय जय अमरीका | लगा ओबामा माथे टीका
सोचो क्या खोया क्या पाया | उसने तुमको खूब बनाया
दोहा: १३:११
कथा आज की बस यहीं, करते हैं हम बंद |
फिर आयेंगे हम कभी, लेके दूजे छंद ||
करो भाइयों आप भी, सार्थक एक प्रयास |
भाँती भाँती क़े छंद की, हमें आप से आस ||
सोरठा: ११:१३
हमें आप से आस, करें बढ़ चढ़ कर रचना
बने ओबिओ ख़ास, प्रयास रहे ये अपना 

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