किसी भी दोस्ती में जब कभी भी दाग़ होता है
हकीकत है यही की दोस्ती को दोस्त ठगता है
परीशां हो नहीं, छाया अँधेरा भी मिटेगा ही
हमेशा रात के ही बाद तो सूरज निकलता है
मुझे आँसू नहीं भाते, मगर वो अश्क है मोती
किसी की आँख से जो आह पर मेरी,छलकता है
अंधेरी रात की साजिश से हमको ये नही दिखता
यकीं रखिये की सूरज हर घड़ी मौजूद रहता है
निकल कर शहर से जब सड़क मेरे गाँव में पहुची
लगे ऐसा यहाँ इसका भी जैसे दम निकलता है
हँसी जो देख ली थी एक दिन उन सुर्ख होठों पर
मेरे दिल में हमेशा इक सुहाना ख़्वाब पलता है
मेरी तनहाइयों से है नहीं शिकवा मुझे कोइ
इन्ही क़े साथ ही मेरा जहाँ आबाद रहता है
सुराहीदार गर्दन, झील सी आँखें, हँसी सूरत
पुराना हो चुका कोई फ़साना कम ही चलता है
खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो
ReplyDelete