किसीको कहानी सुनाके जलाऊँ
हँसूँ या मैं अपनी हँसी को छुपाऊँ
हँसूँ या मैं अपनी हँसी को छुपाऊँ
ख़ुशी से दिया जो जलाया था मैंने
बुझा दूँ उसे और खुद को जलाऊँ
हमारे ग़मों कि तुम्ही तो दवा हो
तुम्ही हो जिसे देख कर मुस्कराऊँ
मेरे दिल में उभरी हुईं है दरारें
उन्हें लाँघ क़े मैं तेरे पास आऊँ
इलाही तुम्हारा मुक़द्दर बना दे
इसी इक दुआ को मैं लब पर सजाऊँ
निभानी मुझे है वफ़ा जो तुम्हारी
तुम्हे मैं भला छोड़कर कैसे जाऊं
मलाहत तुम्हारे हँसी आरिजों कि
जिन्हें देख कर होश अपने गवाऊँ
जो बादल फटे हैं रुआँसे थे कब से
इन्हें अपनी आँखों से कब तक बहाऊँ
नहीं हो सका मैंने कोशिश तो की थी
हँसूं खुल के मैं औ नहीं डबडबाऊँ
मुझे होश आया लुटा क़े सभी कुछ
मिला जब सभी कुछ कहाँ होश पाऊँ
मुसीबत तो देखो जले दिल हमारा
बुझाऊँ मैं दिल को या उनको रिझाऊँ
बड़े भाई /
ReplyDeleteआप अपनी लेखनी ....में स्याही कहाँ से लाते है /
स्नेह बनाए रखे अनुज पर भी