Friday, December 17, 2010

किसीको कहानी सुनाके जलाऊँ


किसीको कहानी सुनाके जलाऊँ
हँसूँ या मैं अपनी हँसी को छुपाऊँ

ख़ुशी से दिया जो जलाया था मैंने 
बुझा दूँ उसे और खुद को जलाऊँ

हमारे ग़मों कि तुम्ही तो दवा हो
तुम्ही हो जिसे देख कर मुस्कराऊँ

मेरे दिल में उभरी हुईं है दरारें
उन्हें लाँघ क़े मैं तेरे पास आऊँ

इलाही तुम्हारा मुक़द्दर बना दे
इसी इक दुआ को मैं लब पर सजाऊँ

निभानी मुझे है वफ़ा जो तुम्हारी
तुम्हे मैं भला छोड़कर कैसे जाऊं

मलाहत तुम्हारे हँसी आरिजों कि
जिन्हें देख कर होश अपने गवाऊँ


जो बादल फटे हैं रुआँसे थे कब से 

इन्हें अपनी आँखों से कब तक बहाऊँ 

नहीं हो सका मैंने कोशिश तो की थी 
हँसूं खुल के मैं औ नहीं डबडबाऊँ

मुझे होश आया लुटा क़े सभी कुछ
मिला जब सभी कुछ कहाँ होश पाऊँ

मुसीबत तो देखो जले दिल हमारा
बुझाऊँ मैं दिल को या उनको रिझाऊँ

1 comment:

  1. बड़े भाई /
    आप अपनी लेखनी ....में स्याही कहाँ से लाते है /
    स्नेह बनाए रखे अनुज पर भी

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