Tuesday, November 2, 2010

दीवाली

हे लक्ष्मी माँ अबकी बारी उनकी भी सुध लो
जिनके घर न दीपक बाती गोंद उन्हें तुम लो
जिनके घर में जलती न हो चूल्हे में भी आग
ऐसा कुछ कर दो माँ अबकी जागें उनके भाग
बच्चा उनके घर में कोई भूखा न सो जाय
पूड़ी खीर भले न खावें पर चेहरा खिल जाय
माँ कि हँसी न हो बनावटी झूठा लगे न बाप
स्वागत करने उठा कोई भी हाथ न जाए काप
मुफलिस के तन को दे कपड़ा मन में दीप जला
होगी मेरी यही दिवाली सब का होए भला
अखलाकन न हँसे कोई मन रहे न कोई उदास
इस दीवाली मेरी तुझसे बस इतनी सी आस

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और पावन भावनाएँ है तिवारी जी.

    - विजय
    http://www.hindisahityasangam.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. भावों में इतनी निस्वार्थता एवं सादगी वाकई अगर सम्रूर्ण मानव समाज इतने उत्कृष्ट विचार रखे और उन पर अमल करे तो प्रथ्वी और स्वर्ग में कोई अंतर नहीं रह जायेगा

    ReplyDelete