Friday, November 26, 2010

मैं करता हूँ प्यार

मैं करता हूँ प्यार जिसे है स्वयं प्यार की मूरत
देख देख बस जीता जाऊं है ऐसी वो सूरत

अपने कोमल स्पर्श मात्र से दुःख मेरा हर लेती
निश्छल उसकी हँसी मुझे दुनियाँ का सब सुख देती

पैरों के नाखून दिखें ज्यूँ घाटी नीचे झील
पावों के तलवे यूँ जैसे सूरज लीना लील

पंजे जैसे हिमखंडों से नीचे उतरे नीर
पाँव सुघड़ उत्साह भरे चलने को रहें अधीर

उसकी गोंदी बैठ विधाता रचते सृष्टि विधान
अंग लगे जो मृत शरीर आ जाए उसमे जान

ग्रीवा जैसे संगमरमरी मूरत बिन श्रृंगार
होठ गुलाबी व्यक्त करें इक दूजे का आभार

गालों की लालिमा चमकती ज्यों उषा की लाली
सुघर नासिका करती जैसे बगिया की रखवाली

भाल चमकता स्नेह सिक्त ज्यों मोती का कंगूरा
केश फहरते ऐसे ज्यों बादल खा जाए धतूरा

ऐसी ईश्वर की रचना से करता हूँ मैं प्यार
मेरे जीवन पर है बस इस रचना का अधिकार

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