मैं करता हूँ प्यार जिसे है स्वयं प्यार की मूरत
देख देख बस जीता जाऊं है ऐसी वो सूरत
अपने कोमल स्पर्श मात्र से दुःख मेरा हर लेती
निश्छल उसकी हँसी मुझे दुनियाँ का सब सुख देती
पैरों के नाखून दिखें ज्यूँ घाटी नीचे झील
पावों के तलवे यूँ जैसे सूरज लीना लील
पंजे जैसे हिमखंडों से नीचे उतरे नीर
पाँव सुघड़ उत्साह भरे चलने को रहें अधीर
उसकी गोंदी बैठ विधाता रचते सृष्टि विधान
अंग लगे जो मृत शरीर आ जाए उसमे जान
ग्रीवा जैसे संगमरमरी मूरत बिन श्रृंगार
होठ गुलाबी व्यक्त करें इक दूजे का आभार
गालों की लालिमा चमकती ज्यों उषा की लाली
सुघर नासिका करती जैसे बगिया की रखवाली
भाल चमकता स्नेह सिक्त ज्यों मोती का कंगूरा
केश फहरते ऐसे ज्यों बादल खा जाए धतूरा
ऐसी ईश्वर की रचना से करता हूँ मैं प्यार
मेरे जीवन पर है बस इस रचना का अधिकार
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