अपनी अर्थी को हंस कर सजाते रहें
क्यूँ भरोसा करें हम किसी और पर
खुद हमी अपना मातम मनाते रहें
आएगी जब मुसीबत तो सोचेंगे हम
क्यूँ अभी से हम आंसू बहाते रहें
हो सकेंगे न शामिल जनाज़े में जो
उनकी अर्थी को कांधा लगाते रहें
बद्दुवाओं से कोई भी मरता नहीं
कर दुवा क्यूँ न एहसां जताते रहें
जो किनारा किये जिक्र से भी मेरे
गीत उनके ही हम गुनगुनाते रहें
जिनकी ऑंखें हुईं नम मेरे हाल पे
है दुवा वो सदा खिलखिलाते रहें
मेरी शालीनता को न समझें कमी
ये हकीकत उन्हें हम बताते रहें
जी करेगा भरेगा वही है ये तय
ये अलख बारहा हम जगाते रहें
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